Chhath Special Story: बिहार की आत्मा में बसता छठ पर्व, जानें इसके पीछे की कहानी

Chhath Special Story: बिहार की आत्मा में बसता छठ पर्व, जानें इसके पीछे की कहानी
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Chhath Special Story: छठ का पर्व बिहार की जान है। इस त्योहार को भगवान सूर्य और छठी मइया की उपासना का पर्व माना जाता है।

Chhath Special Story: हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 17 नवंबर से लेकर 20 नवंबर तक मनाया जाएगा। छठ पर्व आते ही बिहारियों के चेहरे पर एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। आधुनिक दुनिया के बीच यह पर्व आज भी बिहार की मूल आत्मा है। इस पर्व की खूबसूरती लोगों के घरों से लेकर घाटों तक देखी जा सकती है। इन चार दिनों छठी मइया और सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। जानिए क्यों ये पर्व पूर्वांचल लोगों के दिलों में बसता है।

बिहारियों का गर्व है छठ पर्व

छठ पर्व बिहार की संस्कृति, सभ्यता एकता के भाव का आवाहन करता है। बिहारवासी बड़ी बेसब्री से पूरे साल छठ पर्व का इंतजार करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह पर्व बिहारवासियों की जान है। इस के पीछे की वजह कर्ण को माना जाता है, क्योंकि सूर्य पुत्र कर्ण अंगदेश से ताल्लुक रखते थे। वर्तमान समय में अंगदेश भागलपुर में है, जो बिहार में स्थित है।

सूर्य पुत्र कर्ण की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंगराज कर्ण पाण्डवों की माता कुंती और सूर्य देव की संतान हैं। सूर्य के तेज के कारण कर्ण का जन्म हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य को अपना आराध्य मनाते थे। इसके साथ ही वे नियमानुसार पानी में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना कर जल अर्घ्य करते थे।

पौराणिक कथा

शास्त्रों के अनुसार, प्रियव्रत नाम के राजा की कोई भी संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने सारे जतन किए, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। इस बात से राजा बहुत दुखी हुए और कुछ समय बीतने के बाद महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के बाद महारानी को पुत्र प्राप्ति हुई, लेकिन वह मरा हुआ था।

राजा के मृत पुत्र की खबर सुनकर पूरे राज्य में मातम पसर गया। ऐसा कहा जाता है कि जब राजा अपने मृत पुत्र को दफनाने के लिए ले जा रहे थे। उसी वक्त ब्रह्माजी की पुत्री देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने कहा कि वे षष्ठी माता हैं उनकी पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी। उसके बाद राजा प्रियव्रत ने वैसा ही किया, जैसा माता ने कहा था। कुछ समय उपरांत महारानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन छठी मइया की पूजा होने लगी।

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