आइए जानें बाबा महाकालेश्वर की संपूर्ण कहानी

सावन विशेष: बहुत समय पहले उज्जयिनी में एक चंद्रसेन नाम का राजा राज्य करता था। कहा जाता है कि राजा चंद्रसेन भगवान शिव का परम भक्त था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के गणों में प्रमुख मणिभद्र नाम का गण उसका मित्र था। तथा एक बार शिवगण मणिभद्र ने अपने मित्र राजा चंद्रसेन को एक 'चिंतामणि' प्रदान की। राजा चंद्रसेन ने उस मणि को अपने गले में धारण कर लिया। बताया जाता है कि मणि को धारण करते ही राजा का प्रभामंडल जगमगा उठा। इसके साथ ही राजा चंद्रसेन की ख्याति अन्य देशों में भी बढ़ने लगी। उस समय के अन्य राजाओं ने राजा चंद्रसेन से 'मणि' को प्राप्त करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। कुछ राजाओं ने राजा चंद्रसेन के पास जाकर मणि मांगी और कुछ राजाओं ने मणि पाने के लिए राजा चंद्रसेन से विनती की।
राजा चंद्रसेन किसी को वह मणि नहीं देना चाहते थे। मणि राजा की बहुत प्रिय वस्तु थी, इसलिए राजा चंद्रसेन ने वह चिंतामणि किसी भी राजा को नहीं दी। इसके बाद कुछ राजाओं ने मणि पाने की अभिलाषा में राजा चंद्रसेन पर आक्रमण कर दिया।
आक्रमण को देखकर शिवभक्त राजा चंद्रसेन भगवान महाकालेश्वर की शरण में पहुंचकर ध्यानमग्न हो गया। इस दौरान जब राजा चंद्रसेन समाधि में बैठा था तभी एक गोपी वहां अपने छोटे बालक को साथ बाबा महाकालेश्वर के दर्शन के लिए आई।
उस समय बच्चे की उम्र थी करीब पांच वर्ष और गोपी विधवा थी। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक भी शिव की पूजा हेतु प्रेरित हुआ। वह कहीं से एक पत्थर ले आया और अपने घर पहुंच कर एकांत में बैठकर शिवलिंग की पूजा करने लगा।
कुछ देर पश्चात उसकी माता गोपी ने बच्चे को भोजन के लिए बुलाया किन्तु वह बच्चा बुलाने के बाद भी भोजन के लिए नहीं आया। जब उसकी मां स्वयं बच्चे को बुलाने आई तो उसने देखा बालक ध्यानमग्न बैठा है और उसकी आवाज नहीं सुन रहा है।
तब क्रोधित होकर बच्चे की माता ने उस बच्चे को पीटा और सारी पूजन-सामग्री वहां से फेंक दी।
ध्यान से मुक्त होकर जब बच्चे को चेतना आयी और उसने अपनी पूजा को नष्ट होने का ज्ञान हुआ तो वह बच्चा बहुत दुःखी हुआ। बताया जाता है कि इसी दौरान वहां अचानक एक चमत्कार हुआ।
बाबा महाकालेश्वर की कृपा से वहां एक बहुत सुंदर मंदिर निर्मित हो गया। उस मंदिर के बीच में दिव्य शिवलिंग स्थापित था इसके बाद उस बच्चे ने भगवान की फिर से पूजा की।
जब राजा चंद्रसेन को इस घटना की जानकारी मिली तो वह भी उस शिवभक्त बच्चे के पास गया। और बाकी अन्य राजा जो मणि के लिए युद्ध पर उतारू थे, वे भी पहुंचे।
कहा जाता है भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में स्वयं विराजमान है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असीम महिमा का वर्णन मिलता है। महाकाल साक्षात राजाधिराज देवता माने गए हैं।
सावन में पूरा उज्जैन शिवमय हो जाता है। चारों ओर बस शिव जी का ही गुंजन सुनाई देता है। तथा फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि पर पूरा शहर बाराती बन शिवविवाह में शामिल होता है। अगले दिन अमावस्या को सेहरे के अत्यंत आकर्षक दर्शन होते हैं। नयनाभिराम साजसज्जा के बीच एक उत्सव धूमधाम से संपन्न होता है। भगवान शिव की नगरी उज्जैन भक्ति रस में आकंठ डूबी नजर आती है।
मध्यप्रदेश की तीर्थनगरी उज्जैन में पुण्य सलिला क्षिप्रा तट के पास यह मंदिर करीब छठी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित हुआ। तथा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से बाबा महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग प्रमुख है।
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