जानिए दीपदान क्या है, दीपदान की विधि

जानिए दीपदान क्या है, दीपदान की विधि
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दीपदान कोई कठिन कार्य नहीं है। दीपदान बड़ी ही सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है। जिसका पुण्य फल किसी यज्ञ से कम नहीं होता है। दीपदान के लिए वेदों के मतानुसार कुरूक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के दौरान और नमर्दा नदी में चंद्र ग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो फल मिलता है, वह फल अधिक मास में दीपदान करने से मिल जाता है। अर्थात अधिक मास के दौरान बहुत ही पुण्यदायी होता है दीपदान करना।

दीपदान कोई कठिन कार्य नहीं है। दीपदान बड़ी ही सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है। जिसका पुण्य फल किसी यज्ञ से कम नहीं होता है। दीपदान के लिए वेदों के मतानुसार कुरूक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के दौरान और नमर्दा नदी में चंद्र ग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो फल मिलता है, वह फल अधिक मास में दीपदान करने से मिल जाता है। अर्थात अधिक मास के दौरान बहुत ही पुण्यदायी होता है दीपदान करना।

क्या है दीपदान

दीपदान अधिकतर लोग प्रतिदिन करते हैं। अर्थात आप अपने घर से मंदिर जाते हैं, और वहां पर भगवान के सामने दीया प्रज्वलित करके छोड़ आते हैं। यही क्रिया दीपदान कहलाती है। या फिर कार्तिक मास या किसी अन्य पुण्य दायी मास में आप पवित्र नदियों में आप दीपक प्रज्वलित करके प्रवाहित करते हैं। यह भी दीपदान ही होता है। इसलिए दीपदान बहुत ही सरल प्रक्रिया है। और बहुत ही पुण्यदायी भी है।

दीपदान का सीधा सा अर्थ आप समझ सकते हैं कि आस्था का वैदिक तरीके से किसी योग्य स्थान पर दीया जलाना। योग्य स्थान यानि नदी के किनारे, घर के पूजा स्थलपर, किसी सरोवर के किनारे, किसी धार्मिक वृक्ष के समीप, मंदिर आदि। लेकिल अगर यह दीपदान वैदिक परंपरा के अनुसार हो तो निश्चित ही अधिक पुण्यदायी होता है।

दीपदान की विधि

दीपदान से पहले आप अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध होने के बाद दीपदान की निर्धारित तिथि को पुज्य पितृों तथा कुलदेवता और अपने ग्राम देवता-नगर देवताओं को याद करके उनके नाम से सरसों के तेल का एक बड़ासा दीया जलायें। इसके बाद उस दीये से प्रार्थना कीजिए कि हे! आत्मारूपी प्रकाश आप ईश्वर के सबसे करीब हैं, आप सभी जीवों के बारे में जानने वाले ज्ञातवेदा है, मैं अज्ञानी अंधकार से घिरा एक निरीह प्राणी हूं, आपकी शरण में आया हूं।

इसके पश्चात अपने नाम और गोत्र का नाम लेकर के दीपदान का संकल्प लें। संकल्प के बाद अपना शिष्य भाव उन्हें अर्पित कर दीजिए। उसके बाद एक थाली में आपके लिए निर्धारित दीपकों की संख्या के बराबर दीपकों को रख लीजिए। और साथ ही साथ दीप देव, सूर्यदेव और अग्निदेव का ध्यान कर लें। इसके पश्चात प्रार्थना करें कि आप अंधकार का नाश करने वाले ब्रह्मस्वरूप हैं। मेरे द्वारा की गई पूजा को ग्रहण करें। और ओज तथा तेज की वृद्धि करें। इसके पश्चात दीपक को नमस्कार करें और पुष्प अर्पित करें। पुष्प अर्पित करने के बाद उनसे प्रार्थना करें कि हे दीप ज्योति मेरा शुभ करें, मेरा कल्याण करें। मुझे और मेरे परिवार को आरोग्य प्रदान करें। मेरे परिवार को सुख-संपदा प्रदान करें। मेरी बुद्धि को प्रकाशित करें। दीप ज्योतिरूपा आप भगवती को नमस्कार है। शुभ , कल्याण और आरोग्य प्रदान करें तथा मेरे आत्मतत्व की वृद्धि के लिए आप दीप ज्योति हैं। आपको नमस्कार है। इस प्रकार से सभी दीपकों का पूजन करने के बाद आप पुन: दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें। और दाहिने हाथ में आम का पत्ता लेकर पत्ते पर जल लें और सभी दीपकों के चारों ओर घुमाते हुए उस जल को भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद फल और मिष्ठान आदि को उन्हें अर्पित करें।

इसके बाद एक दीपक को दाहिने हाथ में लें और जिस उद्देश्य से दीपदान किया जा रहा है। उसके अनुरूप मंत्र का आपको जाप करना है। मंत्र का निर्धारित संख्या और निर्धारित समय तक जाप करना है।

दीपदान से दीर्घ आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्र आदि की भी प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला व्यक्ति सौभाग्य युक्त होकर स्वर्ग लोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। यह सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है जो किसी यज्ञ से कम फल देने वाला नहीं है।

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