Dhanteras 2020 : धनतेरस पर जानिए धन के देवता भगवान कुबेर की कथा,पूर्वजन्म में क्यों थे वह एक चोर

Dhanteras 2020 : धनतेरस पर जानिए धन के देवता भगवान कुबेर की कथा,पूर्वजन्म में क्यों थे वह एक चोर
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Dhanteras 2020 : धनतेरस (Dhanteras) के दिन भगवान धनवंतरी (Lord Dhanvantari) के साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुबेर अपने पिछले जन्म में क्या थे और कैसे वह धन के देवता बन गए।अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं धन के देवता कुबेर की कथा।

Dhanteras 2020 : धनतेरस 13 नवंबर 2020 (Dhanteras 13 November 2020) को मनाई जाएगी। दिवाली की शुरुआत धनतेरस से ही मानी जाती है। धनतेरस से ही माता लक्ष्मी के आगमन की तैयारी होने लगती है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। क्योंकि भगवान कुबेर की पूजा के बिना माता लक्ष्मी की पूजा (Goddess Laxmi Puja) अधूरी मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान कुबेर को कैसे धन के देवता पद प्राप्त हुआ और क्यों उन्हें पूजा जाता है मां लक्ष्मी के साथ

भगवान कुबेर की कहानी (Bhagwan Kuber Ki Kahani)

भगवान कुबेर पूर्वजन्म में एक गुणनिधी नाम के गरीब ब्राह्मण थे। बचपन में उन्होंने अपने पिता से धर्म शास्त्र की शिश्रा ली। लेकिन गलत संगत में आने के कारण उन्हें जुआ खेलने और चोरी की लत लग गई। गुणनिधी की इन हरकतों से परेशान होकर उनके पिता ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद उनकी हालत दयनीय हो गई और वह लोगों के घर जाकर भोजन मांगने लगे।

एक दिन गुणनिधि भोजन की तलाश में गांव- गांव भटक रहे थे। लेकिन उन्हें उस दिन किसी ने भोजन नहीं दिया। इसके बाद गुणनिधि भूख और प्यास से परेशान हो गए। भूख और प्यास के कारण गुणनिधि भटकते-भटकते जंगल की और निकल पड़े। जंगल में उन्हें कुछ ब्राह्मण भोग की सामग्री ले जाते हुए दिखाई दिए। भूख की सामग्री को देख गुणनिधि की भूख और भी ज्यादा बढ गई और खाने के लालच में वह ब्राह्मणों के पीछे- पीछे चल दिए।

ब्राह्मणों का पीछा करते- करते गुणनिछि एक शिवालय आ पहुंचे। जहां उन्होंने देखा की ब्राह्मण भगवान शिव की पूजा कर रहे थे और भगवान शिव को भोग अर्पित कर भजन कीर्तन में मग्न हो गए। गुणनिधि शिवालय में भोजन चुराने की ताक में बैठे हुए थे।उन्हें भोजन चुराने का मौका रात में तब मिला। जब भजन कीर्तन समाप्त कर सभी ब्राह्मण सो गए थे। गुणनिधि दबें पांव भगवान शिव की प्रतिमा के पास जा पहुंचे । लेकिन वहां पर इतना अंधेरा था कि उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

इसलिए उन्होंने एक दीपक जलाया। लेकिन वह दीपक हवा के कारण बुझ गया और यह क्रम बार- बार चलता रहा। अंत में वह वहां से भोग प्रसाद चुराकर भागने कि कोशिश करने लगे। भागते समय एक ब्राह्मण ने उन्हें देख लिया और चोर - चोर चिल्लाने लगा। गुणनिधि वहां से जान बचाकर भाग निकले लेकिन वह नगर के रक्षकों का निशाना बन गए।भोजन चुराकर भागते समय गुणनिधि की मौत हो गई। लेकिन अनजाने में उनसे महाशिवरात्रि के व्रत का पालन हो गया था।

जिसके कारण वह उस व्रत के शुभ फल के हकदार बन गए थे। अनजाने में महाशिवरात्रि के व्रत का पालन हो जाने की वजह से गुणनिधि अपने अगले जन्म में कलिंग देश के राजा बने। अपने इस जन्म में गुणनिधि भगवान शिव के परम भक्त हुए थे। वह सदैव भगवान शिव की भक्ति में खोए रहते थे। उनकी इस कठिन तपस्या और भक्ति को देखकर भगवान शिव उन पर प्रसन्न हुए। यह भगवान शिव की ही माया थी। जिसके कारण एक गरीब ब्राह्मण धन के देवता कुबेर कहलाए और संसार में पूजनीय बन गए।

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