क्या अंतर है मुनि, योगी, ऋषि, साधु और संत में, जानें...

- हमारे इतिहास में ऋषि, मुनि, योगी और संत उतना ही योगदान रखते हैं जितना की एक सुखी परिवार में बड़े बुजुर्ग।
- प्रत्येक वैदिक ग्रंथ में ऋषि, मुनियों का जिक्र जरुर होता है।
हमारे इतिहास में ऋषि, मुनि, योगी और संत उतना ही योगदान रखते हैं जितना की एक सुखी परिवार में बड़े बुजुर्ग। हिन्दू धर्म के प्रत्येक वैदिक ग्रंथ में ऋषि, मुनियों का जिक्र जरुर होता है, पर शायद ही आपको ऋषि, मुनि, योगी और संतों में अंतर पता होगा। तो आइए जानते हैं, ऋषि, मुनि, योगी और संतों में क्या अंतर है, इसके बारे में...
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आसान भाषा में ऋषि को एक टाइटल बताया गया है और यह टाइटल उन्हीं को दिया जाता है जिन्हें अपने शास्त्रों के बारे में सबकुछ पता हो। तथा इन्हें हर चीज के पीछे की साइंस के बारे में भी ज्ञान होता है।
वहीं मुनि शब्द संस्कृत के एक मनन शब्द से लिया गया है। इसका मतलब सोचना होता है। मुनि उन्हें कहा जाता है जोकि बहुत ही गहराई से सोचते हैं। इनके सोचने की शक्ति हम सब से बहुत ही ज्यादा और आगे होती है।
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वहीं ऋषि वो लोग कहलाते हैं जिन्हें सब चीजों के बारे में पता होता है। इनके द्वारा कही गई बात कभी भी झूठी साबित नहीं होती है। वो भी इसलिए कि इनके द्वारा दिए गए शाप और वरदान कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जैसे ऋषि दुर्वासा के दिए वरदान के कारण ही कुन्ती को सभी देवपुत्र युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम प्राप्त हुए। ऋषियों को हम वैदिक काल के साइंटिस्ट भी कह सकते हैं। वैसे भी आज के साइंटिस्ट के द्वारा कही गई बात को कोई भी नहीं नकारता। सनातन धर्म में कई हजार वर्ष पहले ऋषियों की कही हुई बात को कोई भी नहीं नकारता था। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में चार प्रकार के ऋषियों का जिक्र है।
1 . महान ऋषि
महान ऋषि जोकि ऋषियों के भी ऋषि होते थे।
2 . राजर्षि
इसका मतलब है कि कोई राजा ऋषियों के लेबल का ज्ञान प्राप्त कर लेता है, उन्हें राजर्षि कहा जाता है।
3. देवर्षि
अगर कोई देवता बहुत ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लेता है तो उन्हें देवर्षि कहा जाता है। जैसे नारद मुनि जोकि एक देवर्षि भी हैं।
4.ब्रह्मर्षि
ब्रह्मर्षि वो होते हैं जिनके पास अपार अद्यात्मिक ज्ञान होता है। जैसे ब्रह्मर्षि वसिष्ठ और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जोकि श्रीराम जी के गुरु थे।
वहीं साधु उस व्यक्ति को बताया गया है जोकि हमेशा सही रास्ते पर चलता है। कभी किसी के साथ गलत नहीं करता है और संत वो कहलाते हैं जिन्होंने कड़ी तपस्या से ज्ञान प्राप्त किया हो। जिससे वो समाज का कल्याण कर सकें। सीधे शब्दों में संत वो लोग हैं जो समाज को सही राह दिखाते हैं।
वहीं सन्यासी वो लोग होते हैं जिन्होंने इस संसार को त्याग दिया हो और संसार की सारी विषय-वासना आदि को छोड़ दिया हो। केवल भगवान को पाने का रास्ता ही चुन लिया हो।
वहीं योगी लोग अपने आप को संत बताते हैं और उनकी सारी जिंदगी भगवान की साधना करने में ही निकल जाती है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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