Diwali Special Story: पांच दिनों तक मनाया जाता है दीपोत्सव, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथाएं

Diwali Special Story: हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है। इस पर्व के दिन लोग अपने घरों को दीयों, मोमबत्ती और बिजली वाली टिमटिमाती लड़ियों से खूब सजाते हैं। बच्चे, बड़े सभी पटाखे जलाकर इस दिन को सेलिब्रेट करते हैं। दिवाली का पर्व कुल पांच दिनों तक मनाया जाता है। दिवाली 5 पर्वो धनतेरस, नरक चतुर्दशी, महालक्ष्मी पूजन, धनतेरस और भाई दूज का संगम है।
नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के नाम से जाना जाता है। इस पर्व का आरम्भ धनतेरस के अगले दिन से होता है। ये पांच त्योहार अलग-अलग युग से संबंध रखते हैं।
पुराणों के अनुसार, धनतेरस, दिवाली और भाई दूज का संबंध सत्य युग से है। वहीं, गोवर्धन पूजा और नरक चतुर्दशी का रिश्ता द्वापर युग से वर्णित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भले ही ये त्योहार अलग-अलग युगों से संबंध रखते हैं, लेकिन तिथियां आस-पास होने के कारण इन्हें एक साथ यानी पांच दिनों तक मनाया जाता है।
जानें पांच दिवसीय उत्सव का किस युग से क्या है रिश्ता
सतयुग में सृष्टि की रचना हुई थी।
त्रेता युग में भगवान राम का अवतार हुआ था।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया था।
कलियुग इस युग में कल्कि भगवान का अवतार होगा।
धनतेरस पर्व मनाने के पीछे की वजह
शास्त्रों के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के प्रकोप से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच थे। शुक्राचार्य ने वामन रूप भगवान विष्णु को पहचान लिया। शुक्राचार्य ने राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इंकार कर देना। इसके बाद भी राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और उन्होंने वाहन से दान मांगने को कहा। इस बात को सुनकर भगवान वामन ने राजावली से 3 पग जमीन मांगी।
भगवान वामन के मांगने पर राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का प्रण लिया। तब भगवान वामन ने अपने मात्र एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को माप लिया और अगले पग में अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए आगे कोई स्थान ही शेष नहीं बचा।
तब राजा बलि ने वामन भगवान को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर उनकी चरणों में रख दिया। इस तरह से राजा बलि और सभी देवी-देवता बलि के प्रकोप से भय मुक्त हो गए। इसके साथ ही देवताओं से छीनी गई धन-संपत्ति से कई गुना संपत्ति उन्हें वापस मिल गई। तभी से इस दिन से धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी पर्व के पीछे की कहानी
नरक चतुर्दशी पर्व को मुक्ति पाने का त्योहार भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। इस दिन पूजा करने से नरक निवारण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए लोग इस दिन अपने घरों में यमराज की पूजा कर विनती करते हैं कि उनके परिवार के सदस्यों को नरक न मिले।
दीपावली का पर्व मनाने के पीछे की वजह
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही माता लक्ष्मी क्षीर सागर से उत्पन्न हुई थीं। इसलिए दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। वहीं, त्रेता युग में भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आए थे।
गोवर्धन पूजा की कहानी
गोवर्धन पूजा का नाता भगवान कृष्ण से है। गोवर्धन पूजा की शुरुआत द्वापर युग से ही हो गई थी। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज वासियों से कहा कि इंद्र की पूजा करने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। इसलिए आप सभी को गौ धन को समर्पित गोवर्धन पर्वत पर जाकर उसकी पूजा करनी चाहिए।
भगवान कृष्ण की बात मानकर लोग गोवर्धन पूजा करने लगे। इस बात से नाराज होकर इंद्र ने भारी बारिश की जिससे डरकर लोग दोबारा से उनकी पूजा करने लगे।
घनघोर बारिश के कारण हर जगह बाढ़ आ गई इससे बचने के लिए लोगों ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की। तब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। लगातार कई दिनों तक भारी वर्षा होती रही, लेकिन किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। ब्रह्मा जी ने इंद्रदेव से कहा कि पृथ्वी लोक पर भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में जन्म लिया है और तुम उनसे लड़ रहे हो।
इस बात को जानकर इंद्र को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी। इस बात के खत्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रख हर साल गोवर्धन पूजा करने की आज्ञा दी। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा को मनाया जाता है। इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन खुश रहने वाला व्यक्ति पूरे साल खुश रहता है। गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
भाई दूज मनाने के पीछे की कहानी
भाई दूज मनाने के पीछे की कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार होती है कि भगवान सूर्य नारायण की पत्नी छाया की दो संताने यमराज और यमुना थे। छाया की पुत्री यमुना, यमराज से निवेदन करती थी कि यमराज छाया के घर पर आकर भोजन करें, लेकिन व्यस्त रहने के कारण यमराज यमुना की बात पर अमल नहीं कर पाते।
एक बार जब दोबारा से कार्तिक शुक्ल का दिन आया तब यमुना ने फिर से यमराज को खाने पर आमंत्रित किया। इस आमंत्रण पर यमराज बहन यमुना के घर खाना खाने गए। तब यमुना ने यमराज से एक वचन मांगा और कहा कि आप हर साल मेरे घर खाना खाने आएंगे। इस बात को स्वीकार करते हुए यमराज ने हामी भरी। ऐसा कहा जाता है कि तब से हर साल इस दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है।
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