दुर्गा पूूजन 2020 : जानिए दुर्गा पूजा की मान्यताएं और शुभ मुहूर्त

दुर्गा पूूजन 2020 : जानिए दुर्गा पूजा की मान्यताएं और शुभ मुहूर्त
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भारत पर्वों और त्यौहारों का देश है। यहां हर वर्ष कई पर्व मनाये जाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक खास पर्व है दुर्गा पूजा। इस मौके पर मां भगवती के नौ अलग-अलग रुपों की आराधना की जाती है। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में यह पर्व मनाया जाता है। परंतु पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन बहुत ही बड़े स्तर पर होता है।

भारत पर्वों और त्यौहारों का देश है। यहां हर वर्ष कई पर्व मनाये जाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक खास पर्व है दुर्गा पूजा। इस मौके पर मां भगवती के नौ अलग-अलग रुपों की आराधना की जाती है। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में यह पर्व मनाया जाता है। परंतु पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन बहुत ही बड़े स्तर पर होता है।

इस अवसर पर बड़े कलात्मक ढंग से सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश को जन मानस के सामने प्रस्तुत करने के लिए पूजा पंडालों का निर्माण किया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन कर समाज को सजग और जागरूक बनाया जाता है। दुर्गा पूजन की तिथियां हिन्दू पंचांग के अनुसार निर्धारित होती हैं तथा इस पर्व से संबंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा कहा जाता है।

दुर्गा पूजा 2020

पूजन पर्व तिथि व मुहूर्त 2020

24 अक्टूबर 2020, अष्टमी तिथि दिन शनिवार

अष्टमी तिथि प्रारंभ - 06:56 बजे (23 अक्टूबर 2020) से

अष्टमी तिथि समाप्त - 06:58 बजे (24 अक्टूबर 2020) तक

दुर्गा पूजा के त्यौहार से संबंधित मान्यताएं

दुर्गा पूजा के दौरान उत्तर भारत में नवरात्र के साथ ही विजयादशमी के दिन रावण पर भगवान श्री राम की विजय का उत्सव दशहरा के रूप मनाया जाता है। उत्तर भारत में इन दिनों जगह-जगह रामलीला के मंचन किए जाते हैं। तो वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का दृश्य अलग होता है। दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में ही मनाया जाता है। मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जो कुछ इस प्रकार है-

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार एक समय में राक्षसों का राजा महिषासुर हुआ करता था, जो बहुत ही बलवान था। स्वर्ग पर आधिपत्य जमाने के लिए उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और महिषासुर से वर मांगने को कहा। महिषासुर ने अमरता का वर मांगा परंतु ब्रह्मा ने इसे देने से इनकार कर इसके बदले महिषासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्ति का वरदान दिया। महिषासुर प्रसन्न होकर सोचा मुझ जैसे बलशाली को भला कोई साधारण स्त्री कैसे मार पाएगी, अब मैं अमर हो गया हूं। कुछ समय बाद ही महिषासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इससे स्वर्गलोक में हाहाकार मच उठता है। सभी देवता स्वर्ग छोड़कर त्रिदेव के पास पहुंचते हैं और इस विपत्ति से बाहर निकालने का आग्रह करते हैं। तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया। यह शक्ति एक स्त्री रूप में प्रकट हुई। जिन्हें कालांतर में माता दुर्गा के नाम से जाना गया। इससे महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

इस पर्व से जुड़ी एक रामायण कालीन मान्यता भी है कि भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसके बाद श्रीराम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण का संहार किया, तब से उस दिन को विजयादशमी कहा जाने लगा।

ये है दुर्गा पूजा का महत्व

इस पर्व का बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सांसारिक महत्व है। दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला पर्व है| दुर्गा पूजा को स्थान, परंपरा, लोगों की क्षमता और लोगों के विश्वास के अनुसार मनाया जाता है। कुछ लोग इसे पांच, सात या पूरे नौ दिनों तक मनाते हैं। लोग माता भगवती दुर्गा देवी की मूर्ति पूजा 'षष्ठि' से शुरु करते हैं, जो 'दशमी' के दिन समाप्त होती है। समाज या समुदाय में कुछ लोग पास के क्षेत्र में पंडाल को सजा कर मनाते हैं। इन दिनों में, आस-पास के सभी मंदिरों में दुर्गा पाठ, जगराता और माता की चौकी का आयोजन किया जाता है। कुछ लोग घरों में ही सभी व्यवस्थाओं के साथ पूजा करते हैं और अंतिम दिन होम व विधिवत पूजा कर मूर्ति का विसर्जन जलाशय, कुंड, नदी या समुद्र में करते हैं।

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