Dussehra Special Story: दशहरे के दिन इन जगहों पर मनाया जाता है शोक, जानें किस गांव में हुआ था दशानन का जन्म

Dussehra Special Story: बुराई के प्रतीक के रूप में प्रत्येक साल विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है। ज्यादातर स्थानों पर अधिकतम तीन पुतले यानी रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाएं जाते हैं। लेकिन कई स्थान ऐसे भी हैं, जहां दशहरे का पर्व अलग ही अंदाज में सेलीब्रेट किया जाता है। इसी कड़ी में अल्मोड़ा शहर को ले लीजिए, यहां रावण के परिवार के 30 पुतले जलाने की परंपरा है। इसके साथ ही गुजरात राज्य में दशहरे के मौके पर रावण और राम की सेना में युद्ध होता है। दशहरे के मौके पर बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जलाने की परंपरा है, जिसे लगभग हर राज्य निभाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत के कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां पर दशहरे के दिन शोक मनाया जाता है। शोक मनाने के अलग-अलग कारण हैं। जानें कौन-कौन सी जगह पर मनाया जाता है शोक।
मंदसौर का दामाद था रावण
मंदसौर मध्य प्रदेश में मौजूद वह जगह है, जहां से रावण का खास संबंध है। ऐसा कहा जाता है, कि मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्म भूमि यानि मायका है इसलिए यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं। दामाद के मरने के बाद खुशी नहीं, बल्कि शोक मनाया जाता है। इस कारण यहां पर रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि दशहरा के दिन रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है। मंदसौर में रावण की 35 फीट ऊंची मूर्ति बनी हुई है।
बिसरख में हुआ था रावण का जन्म
उत्तर प्रदेश में स्थित इस गांव के साथ रावण के जीवन का खास रिश्ता है। इस गांव को लेकर ऐसी मान्यता है कि बिसरख गांव में शिवभक्त दशानन का जन्म हुआ था। इस कारण यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और दशहरा के दिन रावण की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। रावण के पिता ऋषि विश्रवा और माता कैकेसी एक राक्षसी थी। इस गांव के नाम के पीछे की कथा भी रावण के परिवार से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने यहां पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसके सम्मान में इस स्थान का नाम पर बिसरख पड़ा। इतना ही बल्कि इस गांव के लोग रावण को महा-ब्राह्मण मानते हैं।
कांगड़ा में की थी कठोर तपस्या
कांगड़ा, उत्तराखंड के लोगों का मानना है कि इस गांव में लंकापति ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर, उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस कारण यहां के लोग रावण को महादेव का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं और सम्मान करते हैं। इसी वजह से यहां के लोग दशहरे के दिन रावण दहन करने की जगह शोक मनाते हैं।
मंडोर में रावण और मंदोदरी का हुआ था विवाह
मंडोर जगह को लेकर ऐसी मान्यता है, कि यह स्थान मंदोदरी के पिता की राजधानी हुआ करती थी। राजस्थान की इस जगह पर दशानन ने मंदोदरी से विवाह किया था। इस वजह से यहां लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और सम्मान करते हैं।
गडचिरोली में भी नहीं किया जाता रावण दहन
गडचिरोली में गोंड जनजाति के लोग निवास करते हैं, जो स्वयं को रावण का वंशज मानते और उनकी पूजा करते हैं। इस कारण यहां के लोग रावण का पुतला नहीं जलाते हैं।
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