Dussehra Story 2023: दशहरा के दिन पांडवों ने भी की थी धर्म की रक्षा, जानें पौराणिक कथा

Dussehra Story 2023: विजयादशमी यानी दशहरा पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर कोई शख्स संकल्प लेता है कि वो अपनी गलत आदतों को छोड़ देगा और सही मार्ग पर चलेगा। यही नहीं, कई लोग तो समाज और धर्म की रक्षा का भी संकल्प लेते हैं। आज हम ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जहां दशहरा के दिन पांडवों ने गौ रक्षा के लिए युद्ध लड़ा था। अगर आप इस कहानी से अनजान हैं तो नीचे पढ़िये यह पौराणिक कथा...
गौ रक्षा के लिए हुआ था युद्ध
महाभारत के विराट पर्व के मुताबिक, जुएं में हारने के उपरांत पांडव अज्ञातवास काल में विराट नगर में रहने लगे थे। विराट नगर में अर्जुन ने गांडीव धनुष और बाण को शमी के वृक्ष पर छिपा दिया था। भीम द्वारा कीचक वध किए जाने के बाद त्रिगत देश के राजा सुशर्मा ने कौरव सेना के साथ मिलकर विराट नगर पर हमला कर वहां की गायें चुरा लीं, जिनकी रक्षा के लिए विराट नगर के राजा का पुत्र उत्तर कुमार कौरवों से भिड़ गया। लेकिन शत्रुओं की शक्तिशाली सेना के सामने उत्तर कुमार टिक नहीं पाया और रणभूमि को छोड़कर भागने लगा।
इस दृश्य को देख अर्जुन ने अपना बृहन्नला (श्रेष्ठ या महान मानव) के रूप को त्यागकर अपना छिपाया हुआ गांडीव धनुष निकालकर अकेले ही कौरव सेना से युद्ध करने लगे। अकेले ही अजुर्न ने कौरव सेना को परास्त कर दशहरा के दिन ही विजय प्राप्त की थी।
भीम ने किया था कीचक का वध
विराट पर्व के मुताबिक, कीचक की द्रौपदी पर बुरी नजर थी। पहले तो कीचक ने द्रौपदी को अपनी बातों से फुसलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बाद में वह अभद्रता पर उतर आया। कीचक ने द्रौपदी के सम्मान पर वार करने की कोशिश की, जिसका परिणाम कीचक को भारी पड़ा। द्रौपदी ने भीम को अपने अपमान की सारी बात भीम को बताई। इस बात को सुनकर भीम ने कीचक का वध करने की ठानी और उसे मृत्यु प्राप्त करा दी। दशहरा पर्व भी अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। लंकापति रावण ने माता सीता का धोखे से हरण कर लिया था, जिसकी वजह से उसे अपने परिवार के साथ मृत्युलोक में जाना पड़ा।
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