गणेशोत्सव 2020 : कैसे और कब की जाती है गणेश पूजा, जानें सिद्धि विनायक की पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त

भारत में कुछ त्योहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ किसी क्षेत्र विशेष और वहां की संस्कृति आदि के परिचायक भी हैं। इन त्योहारों में किसी न किसी रूप में सभी धर्मों के लोग शामिल रहते हैं। जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा पूरे देश ही नहीं परन्तु पूरी दुनिया में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगातार दस दिनों तक चलता रहता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है। उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। आइए जानें हैं भगवान गणेश के पूजन के संबंध में सारी बातें...
22 अगस्त 2020, गणेश चतुर्थी पर्व तिथि व मुहूर्त
मध्याह्न गणेश पूजा – 11:07 से 13:41
चंद्र दर्शन से बचने का समय- 09:07 से 21:26 (22 अगस्त 2020)
चतुर्थी तिथि आरंभ- 23:02 (21 अगस्त 2020)
चतुर्थी तिथि समाप्त- 19:56 (22 अगस्त 2020)
गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है गणेशोत्सव
हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सिद्धि विनायक गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से गणेश उत्सव आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में प्रतिमा रखकर नियमित पूजन के साथ अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते गाते हुए गणेश प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। और किसी नदी या तालाब आदि में विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है।
गणेश चतुर्थी को कहते हैं डंडा चौथ
गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि आदि के दाता भी माने जाते हैं। मान्यता है कि गुरु-शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डंडे बजाकर खेलते हैं। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डंडा चौथ भी कहते हैं।
ऐसे करें गणेश प्रतिमा की स्थापना व आराधना
गणेश चतुर्थी के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। यह प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से अपने सामर्थ्य के अनुसार बनाई या बाजार से खरीदी जा सकती है। इसके पश्चात एक कोरा कलश लेकर उसमें जल भरकर उसे कोरे कपड़े से बांधा जाता है। तत्पश्चात इस पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार कर उसका पूजन किया जाता है। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। गणेश प्रतिमा के पास पांच लड्डू रखकर बाकी लड्डू ब्राह्मणों या बच्चों में बांट दिये जाते हैं। गणेश जी की पूजा शाम के समय करनी चाहिए। पूजा के पश्चात दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें दक्षिणा भी दी जाती है।
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