Govardhan Puja 2020: आइए जानें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और गिरिराज जी की महिमा

Govardhan Puja 2020:हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक मास में दीपावली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। लोग इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का पौराणिक महत्व है। इस त्योहार का प्रकृति एवं मानव जीवन से सीधा संबंध है। इस त्योहार पर गोधन अर्थात गौ माता का पूजन किया जाता है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उतनी ही पवित्र है जितना कि गंगा जल। यह त्योहार अक्सर दीपावली के अगले दिन ही पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण को क्याें प्रिय हैं गोवर्धन, तो आइए जानें गिरिराज जी के पूजन की विधि, शुभ मुहूर्त और महिमा।
गोवर्धन पूजन, पर्व तिथि व मुहूर्त 2020
गोवर्धन पूजा पर्व तिथि - रविवार, 15 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त - दोपहर बाद 15:17 बजे से सायं 17:24 बजे तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 10:36 (15 नवंबर 2020) से
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक
गोवर्धन पूजा की शास्त्र अनुकूल विधि
इस त्योहार पर हिंदू धर्म के लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की मूर्ति बनाकर उसका विधिविधान से पूजन करते हैं। इसके बाद भगवान गिरिराज को अन्नकूट का भोग लगाते हैं। गाय- बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं उनका भोग लगाया जाता है। फिर सभी सामग्री अपने परिवार व मित्रों को वितरण कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
गोवर्धन पूजा, व्रत और कहानी
यह घटना द्वापर युग की है। ब्रज में इंद्र की पूजा का आयोजन किया जा रहा था। वहां भगवान कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ पहुंचे और उनसे पूछा कि यहां किसकी पूजा की जा रही है। वहां मौजूद लोगों ने भगवान कृष्ण को बताया कि देवराज इंद्र के पूजन का आयोजन हो रहा है। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल के लोगों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता। वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं। जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन महाराज की पूजा होनी चाहिए। सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन महाराज की पूजा करने लगे। इससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने प्रलय करने वाले मेघों को आदेश दिया कि जाओ गोकुल का विनाश कर दो। भारी वर्षा से ब्रजवासी भयभीत हो उठे। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊंगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया। सात दिन की भीषण बरसात के बाद जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्र अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है।
गोवर्धन की महिमा
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे उद्देश्य ब्रज वासियों को गौ धन एवं पर्यावरण के महत्त्व को बतलाना था। ताकि वे उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गौ माता का विशेष महत्त्व है। आज भी गौ द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है।
भगवान कृष्ण को अति प्रिय हैं गोवर्धन
यूं तो आज गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटे पहाड़ी के रूप में हैं, किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है। ऐसी संज्ञा गोवर्धन को इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस काल की यमुना नदी जहां समय-समय पर अपनी धारा बदलती रहीं, वहीं गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्यमान रहे। गोवर्धन को भगवान कृष्ण का स्वरुप भी माना जाता है और इसी रुप में इनकी पूजा की जाती है। गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है - गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं।
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