गोवर्धन पूजा 2020 की तिथि व शुभ मुहूर्त, आप भी जानें

दिवाली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानि प्रथम तिथि को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। लोग इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का पौराणिक महत्व भी है। इस पर्व में प्रकृति और मानव का सीधा संबंध स्थापित होता है। इस पर्व में गोधन यानि गोमाता की पूजा की जाती है।
शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उनती ही पवित्र होती है, जितना कि मां गंगा का निर्मल जल पवित्र होता है। यह पर्व दीपावली के अगले दिन ही मनाया जाता है। किन्तु यदाकदा दीपावली औँर गोवर्धन के पर्वो के बीच एक दिन का अंतर आ जाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि
इस पर्व में हिन्दू धर्म के मानने वाले लोग घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन करते हैं। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं। गाय,बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूलमाला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है। तथा उनकी प्रदक्षिणा भी की जाती है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथा सामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल व अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें 56 भोग कहते हैं उनका भोग लगाया जाता है। उसके बाद सभी सामग्री का अपने परिवार के लोगों में प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। और सभी लोग उसे बड़े प्रेम से ग्रहण करते हैं।
गोवर्धन पूजा की व्रत कथा
द्वापर युग के दौरान ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी। उस समय वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उन्होंने आयोजन कर्ताओं से पूजा के संबंध में पूछा कि यहां किसी की पूजा की तैयारियां हो रही हैं। इस पर सभी गोकुलवासियों ने कहा कि यहां देवराज इंद्र की पूजा की जा रही है। तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता है, वर्षा करना उनका दायित्व है और वे ऐसा करके अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं। जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गोधन का संबंर्धन एवं संरक्षण करते हैं। जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं बल्कि हमको गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे। उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओ ब्रज का विनाश कर दो। भारी बारिश से सभी लोग भयभीत हो गए, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया। और सभी ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाया। जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो इंद्र अपनी मुर्खता पर बहुत ही लज्जित हुए। तथा भगवान श्रीकृष्ण से इंद्र ने क्षमायाचना की। तब से आजतक गोवर्धन पूजा बड़ी ही श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे ब्रजवासियों को गोधन और पर्यावरण के महत्व को बतलाना था। ताकि वे उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गोमाता का विशेष महत्व है। आज भी गऊ द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में अहम स्थान रखता है। यूं तो गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटी पहाड़ी के रूप में है। किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है। उस काल में यमुना नदी जहां समय-समय पर अपनी धारा बदलती रही, वहीं गोवर्धन पर्वत अपने मूल स्थान पर ही स्थित हैं। गोवर्धन को भगवान श्रीकृष्ण का भी स्वरूप माना जाता है। और इसी रूप में इनकी पूजा भी की जाती है। गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं। इनके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं है।
गोवर्धन पूजा के पर्व की शुभ तिथि-15 नवंबर 2020, दिन रविवार
गोवर्धन पूजा का संध्याकाल का शुभ मुहूर्त- दोपहर 15:17 बजे से शाम 17:24 बजे तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ-15 नवंबर 2020 प्रात: 10:36 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 16 नवंबर 2020 प्रात: 07:05 बजे
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