Hariyali Teej 2021 : हरियाली तीज पर आज ऐसे करें माता पार्वती की पूजा, एक क्लिक में पढ़ें इसकी व्रत कथा

Hariyali Teej 2021 : सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज या हरियाली तीज भी कहते हैं। यह तीज कई नामों से जानी जाती है। जैसे हरियाली तीज, श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज आदि इसके कई नाम है। यह त्योहार वैसे तो तीन दिन मनाया जाता है, लेकिन अब समय की कमी की वजह से लोग इसे एक ही दिन मनाते हैं।
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इस दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं। हाथों में नई चूड़ियां, मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं, जो सुहाग के चिन्ह माने जाते हैं और ये महिलाएं नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। यह व्रत केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि कई जगहों पर पुरुष भी मां की प्रतिमा को पालकी पर बैठाकर झांकी भी निकालते हैं। हरियाली तीज के दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
पार्वती सौभाग्य मंत्र
हे गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कांत कांता सुदुर्लभाम्।।
यह मंत्र सौभाग्यवती स्त्रियों का सुहाग अखंड रखता है और अविवाहित कन्याओं के शीघ्र विवाह का योग बनाता है।
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हरियाली तीज व्रत कथा
हरियाली तीज की पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान शिव माता पार्वती को अपने मिलन की कथा सुनाते हैं। वे बताते हैं पार्वती तुमने मुझे अपने पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया। किन्तु मुझे पति के रूप में पा न सकीं। 108 वीं बार तुमने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया। शिवजी कहते हैं कि, पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। सावन तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि 'पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे। पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ हमारा विवाह किया। हे पार्वती! इस शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्त्व यह है कि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होती।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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