Hartalika Teej 2021 : हरतालिका तीज पर 14 साल बाद बन रहा अद्भुत संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, कथा और पूजा विधि

Hartalika Teej 2021 : हरतालिका तीज पर 14 साल बाद बन रहा अद्भुत संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, कथा और पूजा विधि
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  • अखंड सौभाग्य का प्रतीक है हरतालिका तीज
  • सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्‍म्‍य बहुत ज्‍यादा है।

Hartalika Teej 2021 : हरतालिका तीज की महिमा को अपरंपार माना गया है। हिन्‍दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्‍म्‍य बहुत ज्‍यादा है। हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया 9 सितम्बर को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज पर 14 साल बाद रवियोग चित्रा नक्षत्र के कारण बन रहा है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हरियाली तीज और कजरी तीज की तरह ही हरतालिका तीज के दिन भी गौरी-शंकर की पूजा की जाती है। हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत करती हैं। यही नहीं रात के समय महिलाएं जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह विधिवत्त पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। मान्‍यता है कि हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है। यह त्‍योहार मुख्‍य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को "गौरी हब्‍बा" के नाम से जाना जाता है।

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हरतालिका तीज पर रवियोग

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि हरतालिका तीज पर 14 साल बाद रवियोग चित्रा नक्षत्र के कारण बन रहा है। यह शुभ योग 9 सितंबर को दोपहर 2:30 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर को 12:57 मिनट तक रहेगा। हरतालिका तीज व्रत का पूजा का अति शुभ समय शाम 05:16 मिनट से शाम को 06:45 मिनट तक रहेगा। शुभ समय 06:45 मिनट से 08:12 मिनट तक रहेगा। हरतालिका तीज माता पार्वती का भगवान शिव को प्राप्त करने का पर्व है। करीब 14 वर्ष बाद इस बार रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। शाम 5.14 बजे से सभी प्रकार के दोषों को विनाश करने वाले रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। शास्त्रों में रवि योग को बेहद प्रभावशाली माना गया है। इसमें कई अशुभ योगों के प्रभाव कम हो जाते हैं। यह योग महिलाओं के लिए बेहद शुभ है। इस काल में पूजा करना बेहद लाभदायक है।

शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज तिथि: गुरुवार 09 सितंबर 2021

प्रात: काल पूजा मुहूर्त: सुबह 06:03 से सुबह 08:33 तक

प्रदोषकाल पूजा मुहूर्त: शाम 06:33 से रात 08:51

हरतालिका तीज का महत्‍व

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्‍व है। हरतालिका दो शब्‍दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका. हरत का मतलब है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'. प्राचीन मान्‍यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्‍हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्‍णु से उनका विवाह न करा पाएं। सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्‍था है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्‍य का वरदान देते हैं। वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्‍त‍ि होती है।

हरतालिका तीज का व्रत कैसे करें?

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि हरतालिका तीज का व्रत अत्‍यंत कठिन माना जाता है। यह निर्जला व्रत है यानी कि व्रत के पारण से पहले पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित है। व्रत के दिन सुबह-सवेरे स्‍नान करने के बाद "उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये" मंत्र का उच्‍चारण करते हुए व्रत का संकल्‍प लिया जाता है।

हरतालिका तीज की पूजन सामग्री

भविष्यवक्ता अनीष व्यास के अनुसार हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लें: गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल और फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, वस्‍त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद.।

मां पार्वती की सुहाग सामग्री

मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, सुहाग पिटारी।

पूजन विधि

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय. हरतालिका तीज के दिन इस प्रकार शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। संध्‍या के समय फिर से स्‍नान कर साफ और सुंदर वस्‍त्र धारण करें। इस दिन सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके बाद गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं। दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत बनाएं। सुहाग की सामग्री को अच्‍छी तरह सजाकर मां पार्वती को अर्पित करें। शिवजी को वस्‍त्र अर्पित करें। अब हरतालिका व्रत की कथा सुनें। इसके बाद सबसे पहले गणेश जी और फिर शिवजी व माता पार्वती की आरती उतारें। अब भगवान की परिक्रमा करें। रात को जागरण करें.। सुबह स्‍नान करने के बाद माता पार्वती का पूजन करें और उन्‍हें सिंदूर चढ़ाएं। फिर ककड़ी और हल्‍वे का भोग लगाएं. भोग लगाने के बाद ककड़ी खाकर व्रत का पारण करें। सभी पूजन सामग्री को एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें।

व्रत कथा

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास के अनुसार शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था। मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं.। नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया।

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे. फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे. इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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