Holi 2023: क्यों मनाई जाती है होली, जानें इसके पीछे की पौराणिक मान्यता और इतिहास

होली को हिंदुओं का महान पर्व माना जाता है। पौराणिक कथाओं में इसके अलग-अलग महत्व एवं तौर तरीकों के बारे में बताया गया है। आइए जानते हैं कि होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे का इतिहास क्या है। उत्तर भारत में होली मनाने के पीछे मुख्य वजह प्रहलाद की कहानी से जोड़ी जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, होली मुख्य रूप से प्रह्लाद के कथाओं पर आधारित है। होली के पीछे कृष्ण और राधा के बीच के प्रेम और कामदेव के बलिदान की कहानियां भी हैं। हिन्दू पंचांग की मानें तो अनुसार होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
होली का इतिहास
इतिहासकारों का मानना है कि इसका प्रचलन पूर्वी भारत में सर्वाधिक है। इस पर्व का वर्णन अनेक प्राचीन धार्मिक किताबों में देखने को मिल जाता है। नारद और भविष्य पुराणों जैसे प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी होली के पर्व का उल्लेख किया गया है। मशहूर मुस्लिम पर्यटक अलबरुनी ने भी अपनी ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में भी होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम धर्म के कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख करते हैं। यह जरूरी नहीं कि यह पर्व केवल हिन्दू धर्म के ही लोग मनाते हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ और जहांगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है।
होली की प्रसिद्ध कहानियां
होली पर्व को लेकर अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। लेकिन इसमें प्रहलाद की कहानियां मशहूर हैं। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक बलशाली राक्षस था जो कि अपने बल के अहंकार में खुद को ही ईश्वर समझता था। उसने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर ही रोक लगा दी थी। लेकिन हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। प्रह्लाद की इस भक्ति को देखते हुए एक दिन हिरण्यकशिपु क्रोधित होकर अपने पुत्र को कई कठोर दंड दिया। इसके बाद भी प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति करना नहीं छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि यदि वह आग से भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने एक दिन बहन होलिका को कहा कि प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निकुंड में बैठो। जब ऐसा हुआ तो होलिका अग्नि कुंड में बैठी तो वह जल गई और प्रहलाद बच गया। इस ईश्वर भक्ति को देखते प्रह्लाद की याद में इस दिन हर साल होली का उत्सव मनाया जाता है।
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