ऐसे हुई बकरा ईद मनाने की शुरुआत, आइए जानें

31 जुलाई या 01 अगस्त को देशभर में बकरा ईद का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। बकरा ईद को कुर्बानी का त्योहार माना जाता है। बकरा ईद को ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा आदि नाम से भी जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह त्योहार हर साल जिलहिज्ज के महीने में लोग मनाते हैं। बता दें कि इस्लामिक कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर से थोड़ा छोटा होता है। इसमें अंग्रेजी कैलेंडर से 11 दिन कम माने जाते हैं। तो आइए जानें कैसे हुई बकरा ईद का त्योहार मनाने की शुरूआत।
हजरत इब्राहिम के द्वारा शुरू हुई कुर्बानी की प्रथा
बकरा ईद का त्योहार पैगंबर हजरत इब्राहिम द्वारा दी गई कुर्बानी के बाद शुरू हुआ। सपने में मिले अल्लाह के आदेश पर इब्राहिम को अपनी प्रिय चीज कुर्बान करनी थी। इस पर इब्राहिम ने अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान कर दिए। लेकिन इसके बाद उन्हें दोबारा कुर्बानी का सपना आया तो उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी दी और बाद में आंखें खोली तो पाया कि उनका बेटा खेल रहा है। उसकी जगह पर एक बकरे की कुर्बानी खुद हो गई थी। तभी से बकरे की कुर्बानी की प्रथा चली आ रही है।
ऐसे होती है त्योहार की शुरुआत
जिन लोगों के घर में बकरा पल रहा होता है, वे अपने प्रिय बकरे की कुर्बानी देते हैं। लेकिन जिन लोगों के घर में ऐसा नहीं होता और वे कुर्बानी देना चाहते हैं तो उन्हें कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर लाना होता है ताकि उस बकरे से उन्हें लगाव हो जाए।
ईद की नमाज के बाद होती है कुर्बानी
बकरा ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल सुबह की नमाज अदा करते हैं। इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद बकरे का मीट तीन हिस्सों में बांटा जाता है।
ऐसे किए जाते हैं गोश्त के हिस्से
गोश्त के इन तीन भागों में एक भाग गरीबों के लिए, दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटने के लिए और तीसरा भाग अपने पास रखा जाता है।
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