Indira Ekadashi 2020 Kab Hai: इंदिरा एकादशी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Indira Ekadashi 2020 Kab Hai : इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु की पूजा (Lord Vishnu Puja) की जाती है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं यदि कोई व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है तो उसके पितरों के भी सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तो चलिए जानते हैं इंदिरा एकादशी 2020 में कब है, इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त,इंदिरा एकादशी का महत्व,इंदिरा एकादशी की पूजा विधि और इंदिरा एकादशी की कथा।
इंदिरा एकादशी 2020 तिथि (Indira Ekadashi 2019 Tithi)
13 सिंतबर 2020
इंदिरा एकादशी 2020 शुभ मुहूर्त (Indira Ekadashi 2020 Subh Muhurat)
इंदिरा एकादशी प्रारंभ- सुबह 4 बजकर 13 मिनट से (13 सितंबर 2020)
इंदिरा एकादशी समाप्त- अगले दिन सुबह 3 बजकर 16 मिनट तक (14 सितंबर 2020)
इंदिरा एकादशी पारण का समय- दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से शाम 3 बजकर 59 मिनट तक
इंदिरा एकादशी का महत्व
पुराणों में इंदिरा एकादशी का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। यह एकादशी श्राद्ध पक्ष में आती है। इसलिए इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इंदिरा एकादशी का व्रत रखता है उस नर्क में दी जाने वाली यातनाएं नहीं भोगनी पड़ती। इतना ही नहीं जिस किसी घर में इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है।उस घर के पितरों के भी सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति मिल जाती है।
इतना ही नहीं उस घर के पितरों को स्वर्गलोक भी प्राप्ति होती है। यह व्रत संसार के सभी जीवों को मुक्ति दिलाता है। श्राद्ध पक्ष में आने के कारण इंदिरा एकादशी को श्राद्ध पक्ष की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत का फल मनुष्य को उसके जीते जी ही नहीं बल्कि उसके मरने के बाद भी प्राप्त होता है। इसके साथ ही यदि वह पितृ दोष से पीड़ित है तो उसे पितृ दोष से भी मुक्ति मिल जाती है।
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि
1.इंदिरा एकादशी के दिन साधक को किसी पवित्र नदी, सरोवर या तालाब में स्नान करने के बाद बिना सीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद उसे भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करनी चाहिए और उन्हें पीले वस्त्र, पीले पुष्प और नैवेद्य आदि चढ़ाने चाहिए।
3.यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद धूप व दीप से उनकी आरती उतारनी चाहिए और उन्हें पीले वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए।
4. इसके बाद पितरों का श्राद्ध अवश्य करें और गाय,कुत्ते और कौए को भोजन अवश्य कराएं।
5. अंत में किसी निर्धन व्यक्ति और ब्राह्मण को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा अवश्य दें।
इंदिरा एकादशी की कथा
एक बार पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर भगवान श्री श्रीकृष्ण से कहने लगे कि हे भगवन! आश्विन मास में पड़ने वाली एकादशी का नाम , विधि और फल के बारे में मुझे बताएं। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि हे पांडव श्रेष्ठ! इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। इस एकादशी के व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है। इसलिए ध्यानपूर्वक इस कथा को सुनना। इसके सुनने मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
यह सतयुग की कथा है।महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का शुरवीर राजा रहा करता था। वह अपनी प्रजा का पूरा ख्याल रखा करता था। उस राजा के पास संसार की सभी चीजें थी। वह पुत्र और पौत्र से भी संपन्न था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन राजा की सभा चल रही थी कि उसी समय आकाश से नारद जी उसकी सभा में पधारे। राजा ने नारद जी का अतिथि सत्कार किया और आसन ग्रहण करने के लिए कहा।
आसन ग्रहण करने के बाद नारद जी ने राजा से पुछा की आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि में धर्म और मन में भगवान विष्णु बसे हैं? नारद जी की बात सुनकर राजा ने नारद जी से कहा कि मेरे राज्य में सभी कुछ आपकी कृपा से कुशल मंगल है तथा मेरे यहां यज्ञ और सभी धार्मिक काम होते हैं। कृपा करके आपके आगमन का उचित कारण बताएं। तब नारद जी ने राजा से कहा कि आप मेरी बातों को ध्यान से सुनें।
मैं एक समय यमलोक में गया था। मैने वहां तुम्हारे पिता को वहां देखा था। जब मैने इसका कारण जाना तो धर्मराज ने मुझे बताया कि यह एकादशी व्रत भंग होने का फल है। तुम्हारे पिता ने मुझे ये संदेश तुम्हें देने के लिए कहा था। मैने पिछले जन्म कुछ पाप कर्म किए थे। जिसकी वजह से मुझे यहां यातनाएं भुगतनी पड़ रही है। तुम इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे लिए करो ताकि मुझे मुक्ति प्राप्त हो सके और स्वर्ग में स्थान मिल सके।
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