Janmashtami 2020 : आइए जानें कृष्णावतार की कथा, शुभ मुहूर्त, पूजन और उनकी महिमा

Janmashtami 2020 : आइए जानें कृष्णावतार की कथा, शुभ मुहूर्त,  पूजन और उनकी महिमा
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Janmashtami 2020 : भगवान श्रीकृष्ण देवताओं में भगवान विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव में वे अलग- अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका पूरा बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। और उनकी युवावस्था में रासलीलाओं की अनेकों कहानी प्रसिद्ध हैं। एक राजा और मित्र के रूप में वे अपने भक्तों और गरीबों के मसीहा बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ।

भगवान श्रीकृष्ण देवताओं में भगवान विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव में वे अलग- अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका पूरा बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। और उनकी युवावस्था में रासलीलाओं की अनेकों कहानी प्रसिद्ध हैं। एक राजा और मित्र के रूप में वे अपने भक्तों और गरीबों के मसीहा बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ।

श्रीकृष्ण ने महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नए अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनके अंत तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्रीकृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए भक्तजन उपवास रखते हैं और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं।

कब हुआ श्रीकृष्ण का जन्म

जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्रीकृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ-साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

जन्माष्टमी पर्व तिथि व मुहूर्त 2020

11 अगस्त

पूजन का शुभ मुहूर्त: रात 12:04 बजे से रात 12:48 करीब 44 मिनट का शुभ मुहूर्त है।

व्रत पारण– 11:15 (12 अगस्त) के बाद

रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी

अष्टमी तिथि आरंभ – 09:06 (11 अगस्त)

अष्टमी तिथि समाप्त – 11:15 (12 अगस्त)

जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि

1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।

2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।

3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।

4. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।

5. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।

6. यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।

जन्माष्टमी का महत्व

1. इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है।

2. श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियां सजाई जाती हैं।

3. भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।

स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूंज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

जन्माष्टमी कथा

द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन नाम के राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा - न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।

वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूंगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहां आ पहुंचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।

कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुंच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।

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