Janmashtami 2022: जानें, श्रीकृष्ण ने क्यों तोड़ दी थी मुरली, मथुरा जाने के बाद उसका क्या हुआ?

Janmashtami 2022: जानें, श्रीकृष्ण ने क्यों तोड़ दी थी मुरली, मथुरा जाने के बाद उसका क्या हुआ?
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Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण बचपन में बड़े चाव से मुरली बजाया करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि, मथुरा जाने से पहले हमेशा ही उन्होंने मुरली को अपने पास रखा था, उसे एक के लिए भी अपने से अलग नहीं किया था। माना जाता है कि, जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते थे तो उसकी धुन सुनकर उनकी प्रेयसी राधा समते सभी गोपियां भी उनकी तरफ खींची चली आती थीं।

Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण बचपन में बड़े चाव से मुरली बजाया करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि, मथुरा जाने से पहले हमेशा ही उन्होंने मुरली को अपने पास रखा था, उसे एक के लिए भी अपने से अलग नहीं किया था। माना जाता है कि, जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते थे तो उसकी धुन सुनकर उनकी प्रेयसी राधा समते सभी गोपियां भी उनकी तरफ खींची चली आती थीं।

कहा जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने आखिरी बार वृंदावन में मुरली बजायी थी और वहां से मथुरा जाते जाने और श्रीराधा जी से मिलन के बाद उन्होंने मुरली को बजाना छोड़ दिया था। कहा जाता है कि, राधा जी से अंतिम बार वृंदावन में मिलन के बाद श्री किशोरी जी ने उनसे प्रार्थना की थी कि, गोलोक जाने से पूर्व प्रभु एक बार अवश्य दर्शन दें और भगवान उनकी इस प्रार्थना को टाल नहीं पाए और उन्होंने उनके विरह में मुरली बजाना ही छोड़ दिया।

बताया जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण के एक बार अंतिम भेंट श्रीद्वारिका धाम में हुई थी। कहा जाता है कि, श्रीकृष्ण के कहने पर श्रीराधा जी ने कुछ दिन वहां प्रवास किया और उन्हें मुरली की धुन वहां भी भगवान श्रीकृष्ण ने सुनाई थी। माना जाता है कि, जिस समय भगवान श्रीकृष्ण राधारानी को मुरली की धुन सुना रहे थे, उसी दौरान श्रीराधा रानी ने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और गोलोक को प्रस्थान कर गई। पौराणिक मान्यता है कि, श्रीराधा रानी के विरह में ही श्रीकृष्ण ने मुरली को तोड़कर वहीं फेंक दिया था और उसके बाद कभी भी मुरली नहीं बजायी।

मुरली और मोरपंख थे श्रीकृष्ण के अभिन्न अंग

मान्यता है कि, मुरली और मोरपंख भगवान श्रीकृष्ण के अभिन्न अंग थे, वे सदा उन्हें अपने साथ ही रखते थे और कभी उन्हें अपने से अलग नहीं करते थे। मुरली के विषय में एक बार उन्होंने अपने मित्र उद्वव को भी बताया था और कहा था कि, अब तो वे मुरली को श्रीराधा जी के लिए बजाते रहे हैं, लेकिन अब किसके लिए बजाएं, जब किशोरी जी नहीं हैं तो उनके बिना मुरली की धुनों का क्या मतलब है।

मथुरा जाने से पूर्व वे जितने दिन भी बाबा नंद के घर रहे, उन्होंने मुरली और मोरपंख को कभी अपने से अलग नहीं होने दिया। कहा जाता है कि, श्रीराधे रानी और कान्हा दोनों एक ही हैं, वे केवल बाल लीलाएं करने के लिए दो शरीरों में अलग-अलग अवतरित हुए थे और मुरली के आवाज उनके शरीरों के तार को एक साथ जोड़ने का काम करती थी।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)

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