Jyotish Shastra : ज्येतिष में नि:संतान योग के ये हैं प्रमुख कारण, जानें पूरी डिटेल

Jyotish Shastra : कई लोगों को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती, लेकिन सबकुछ होने के बावजूद भी अगर आपके घर में बच्चों की किलकारी की गूंज सुनायी ना दे तो आपका जीवन बोझ बन जाता है। सभी लोग चाहते हैं कि, वैवाहिक जीवन में आने के बाद उनके घर में शीघ्र ही किसी नवजात शिशु की किलकारियों की गूंज सुनायी देने लगे। परन्तु भाग्य के आगे किसी का भी बस नहीं चलता है। सबकुछ ठीक होने के बाद भी कई पूर्वजन्म या जन्मकुंडली में मौजूद पापग्रहों की स्थिति के कारण भी नि:संतान योग बन जाते हैं। तो आइए जानते हैं, ज्योतिष में नि:संतान योग बनने के कारणों के बारे में...
पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी
ज्योतिष के अनुसार पंचम भाव को प्रेम और लव रिलेशन के साथ ही संतान और शिक्षा आदि का भाव कहा जाता है। इसी भाव से संतान के विषय में पता लगाया जाता है। अगर आपकी कुंडली के पंचम भाव में कोई पापी या क्रूर ग्रह मौजूद है तो आपके प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, शिक्षा और नि:संतान होने के योग बन सकते हैं।
पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि
कुंडली के पंचम भाव पर जब सूर्य, मंगल और शनि आदि ग्रह की दृष्टि पड़ रही होती है तो जातक के प्रेम संबंधों में खटास आ जाती है और जातक को तलाक जैसी स्थिति से भी गुजरना पड़ सकता है। ऐसे में कई बार जातक की कुंडली में नि:संतान योग का भी निर्माण हो जाता है।
पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध
पंचमेश की पापी और क्रूर ग्रहों से युति होने या दृष्टि होने पर भी प्रेम संबंधों और वैवाहिक जीवन में खटास बनी रहती है और नि:संतान योग बन सकते हैं।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
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