Jyotish Shastra: भोजन हमेशा बैठकर ही करना चाहिए, जानें खड़े होकर खाना खाने से क्या होती हैं परेशानियां

Jyotish Shastra: आजकल वर्तमान दौर में सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन करने का चलन चल गया है, लेकिन हमारे हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि, हमें नीचे जमीन पर बैठकर ही भोजन करना चाहिए। वहीं खड़े होकर भोजन करने से अनेक प्रकार की परेशानियां होती हैं और बैठकर भोजन करने से कई प्रकार के लाभ होते हैं। तो आइए जानते हैं खड़े होकर भोजन करने से होने वाली परेशानियों के बारे में और बैठकर भोजन करने के लाभ के बारे में...
खड़े होकर भोजन करने से होने वाली दिक्कतें
- खड़े होकर भोजन करने की आदत असुरों की होती है। इसलिए इसे शास्त्रों में 'राक्षसी भोजन पद्धति' कहा जाता है।
- खड़े होकर भोजन करने से पेट, पैर व आंतों पर बहुत अधिक तनाव पड़ता है, जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन जैसे अनेक उदर-विकार व घुटनों का दर्द, कमरदर्द आदि उत्पन्न हो जाते हैं। कब्ज अधिकतर बीमारियों का मूल है।
- खड़े होकर भोजन करने से जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का सम्यक पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
- खड़े होकर भोजन करने से हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे हृदयरोगों की सम्भावना बढ़ जाती है।
- खड़े होकर भोजन करने पैरों में जूते-चप्पल होने से पैर गरम रहते हैं। इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती।
- खड़े होकर भोजन करने पर बार-बार कतार में लगने से बचने के लिए थाली में अधिक भोजन भर लिया जाता है, फिर या तो उसे जबरदस्ती खाया जाता है जोकि अनेक रोगों का कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए भोजन को फेंक दिया जाता है।
- जिस पात्र में भोजन रखा जाता है, वह सदैव पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परम्परा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के पात्र अपवित्र हो जाते हैं। इससे भोजन खिलाने वाले के पुण्य का नाश हो जाता है और खाने वालों का मन भी खिन्न-उद्विग्न रहता है।
- खड़े होकर भोजन करने से वातावरण में हो-हल्ले होने के कारण व्यक्ति को थकान और उबान महसूस होती है। मन में भी वैसे ही शोर-शराबे के संस्कार भर जाते हैं।
बैठकर भोजन करने के लाभ
- बैठकर भोजन करने की पद्धति को'दैवी भोजन पद्धति' कहा जाता है ।
- बैठकर भोजन करने से पैर, पेट व आंतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता ।
- बैठकर भोजन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्न का पाचन सुलभता से होता है ।
- बैठकर भोजन करने से व्यक्ति के हृदय पर भार नहीं पड़ता ।
- वहीं आयुर्वेद के अनुसार, भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है। इसीलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ-पैर धोने की परंपरा है।
- पंगत में एक व्यक्ति परोसने वाला होता है, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है। तथा उचित मात्रा में भोजन लेने से व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम रहता है और भोजन का भी अपमान नहीं होता।
- बैठकर भोजन करने के लिए भोजन परोसने वाले व्यक्ति अलग होते हैं, जिससे भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते। तथा भोजन पवित्र बना रहता ही है, साथ ही खाने और खिलाने वाले दोनों लोगों का मन आनंदित रहता है।
- बैठकर भोजन करने से व्यक्ति के मन में शांति बनी रहती है, थकान-उबान भी महसूस नहीं होती ।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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