Jyotish Shastra: उत्तम जीवनसाथी पाने के लिए कन्याएं करें पार्वती स्तोत्र का पाठ, शीघ्र होगी मनोकामना पूरी

Jyotish Shastra: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कई बार कुंडली में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और अन्य कई कारणों से कन्याओं का विवाह सही समय पर नहीं हो पाता है और शादी में बार-बार कोई ना कोई अड़चन और बाधा आने लगती है। तथा कन्याओं की उम्र अधिक होने के कारण उन्हें विवाह के अच्छे प्रस्ताव मिलने में भी दिक्कत हो जाती है। ऐसी स्थिति में कन्या और उसके परिवार के लोग परेशान हो जाते हैं और कई प्रकार के उपाय और टोने-टोटके आदि का सहारा लेते हैं। वहीं अगर आपके विवाह में भी विलम्ब हो रहा है या शादी के प्रस्ताव मिलने में कोई अड़चन या बाधा आ रही है या कन्या के योग्य कोई अच्छा जीवनसाथी नहीं मिल पा रहा है, तो शीघ्र ही योग्य वर प्राप्ति के लिए कन्या को योग्य वर मिलने तक प्रतिदिन माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर के सामने गव्यघृत से दीपक जलाकर, अखंड विश्वास व भक्ति से जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए। विवाह के बाद भी इस स्तोत्र को श्रद्धा के साथ प्रत्यह पाठ करने से वैवाहिक जीवन सुख- समृद्धि मिलती है। मान्यता है कि, इसी स्तोत्र के पाठ करने पर ही माता सीता को भगवान राम पति रुप में प्राप्त हुए थे और मां पार्वती से उन्हें ऐसा वरदान दिया था। तो आइए आप भी आज से प्रतिदिन कम से कम एक बार जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्र का पाठ करें और मां पार्वती से उत्तम जीवनसाथी और सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान पाएं।
।।जानकीकृतं पार्वती स्तोत्र।।
जानकी उवाच
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते।।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले।।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये।।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते।।
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय:।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते।।
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते।।
फलश्रुति
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम्।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम्।।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम्।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम्।।
(श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।)
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
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