Jyotish Shastra: सुखद दांपत्य जीवन और पति प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्या करें इस मंत्र का जाप, मन की मुराद होगी पूरी

Jyotish Shastra: सुखद दांपत्य जीवन और पति प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्या करें इस मंत्र का जाप, मन की मुराद होगी पूरी
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Jyotish Shastra: यदि कन्या विवाह में देरी हो रही है या कन्या के योग्य कोई अच्छा वर नहीं मिल रहा हो तब प्रतिदिन माता पार्वती का पूजन करते हुए इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, ऎसा करने पर शीघ्र ही सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।

Jyotish Shastra: यदि कन्या विवाह में देरी हो रही है या कन्या के योग्य कोई अच्छा वर नहीं मिल रहा हो तब प्रतिदिन माता पार्वती का पूजन करते हुए इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, ऎसा करने पर शीघ्र ही सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि, पौराणिक काल में इस स्तोत्र का पाठ मां जानकी जी ने किया था और इसी स्तोत्र के प्रभाव से उन्हें भगवान श्रीराम पति रुप में प्राप्त हुए थे। अगर किसी कन्या को सुयोग्य वर की तलाश है और वह अपने पति के साथ सुखमय जीवन गुजारना चाहती है तो उसे जानकीकृतं पार्वती स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए और विधि पूर्वक मां गौरा की पूजा करनी चाहिए।

जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रम्

जानकी उवाच

शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये ।

सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते ।।1।।

सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी ।

सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते ।।2।।

हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे ।

पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते ।।3।।

सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते ।

सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले ।।4।।

सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी ।

सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये ।।5।।

परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि ।

साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते ।।6।।

क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा ।

एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते ।।7।।

लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय: ।

एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते ।।8।।

दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।

सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते ।।9।।

शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि ।

हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते ।।10।।

स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम् ।

नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम् ।।11।।

इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम् ।

दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम् ।।12।।

श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)



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