Kaal Bhairava Jayanti 2021: मनोकामना पूरी करने के लिए काल भैरव जयंती पर आज कुत्ते को जरुर खिला दें ये चीज

Kaal Bhairava Jayanti 2021: काल भैरव को भगवान शिव का तीसरा रूद्र अवतार माना जाता है। पुराणों के मुताबिक मार्गशीष महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन ही भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे। शिवपुराण के अनुसार इस दिन भगवान शंकर के अंश से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। अपने अंहाकर में चूर अंधकासुर दैत्य ने भगवान शिव के ऊपर हमला कर दिया था। उसके संहार के लिए भगवान शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इनकी आराधना करने से समस्त दुखों व परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। तो आइए जानते हैं काल भैरव जयंती के बारे में और इस दिन कुत्ते को क्या खिलाने से काल भैरव प्रसन्न होते हैं।
शिव-शक्ति की तिथि अष्टमी
अष्टमी पर काल भैरव प्रकट हुए थे। इसलिए इस तिथि को कालाष्टमी कहते हैं। इस तिथि के स्वामी रूद्र होते हैं। साथ ही कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने की परंपरा है। सालभर में अष्टमी तिथि पर आने वाले सभी तीज-त्योहार देवी से जुड़े होते हैं। इस तिथि पर शिव और शक्ति दोनों का प्रभाव होने से भैरव पूजा और भी खास होती है। इस तिथि पर भय को दूर करने वाले को भैरव कहा जाता है। इसलिए काल भैरव अष्टमी पर पूजा-पाठ करने से नकारात्मकता, भय और अशांति दूर होती है।
दूर होती हैं बीमारियां
भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला या भय को जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा करने से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्य किसी रोग से लंबे समय से पीड़ित है तो वह बीमारी और अन्य तरह की तकलीफ दूर होती है। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। काल भैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।
ऊनी कपड़ों का दान बहुत शुभ
इस बार काल भैरव अष्टमी शनिवार को है। इसलिए अगहन महीने के चलते इस पर्व पर दो रंग का कंबल दान करना चाहिए। इसे भैरव के साथ शनिदेव भी प्रसन्न होंगे। साथ ही कुंडली में मौजूद राहु-केतु के अशुभ फल में कमी आएगी। पुराणों में बताया गया है कि अगहन महीने में शीत ऋतु होने से ऊनी कपड़ों का दान करना चाहिए। इससे भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की भी कृपा मिलती है।
शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं दूर
इस पर्व पर कुत्तों को जलेबी और इमरती खिलाने की परंपरा है। ऐसा करने से काल भैरव खुश होते हैं। इस दिन गाय को जौ और गुड़ खिलाने से राहु से होने वाली तकलीफ खत्म होने लगती है। साथ ही इस दिन सरसों का तेल, काले कपड़े, खाने की तली हुई चीजें, घी, जूते-चप्पल, कांसे के बर्तन और जरूरतमंद लोगों से जुड़ी किसी भी चीज का दान करने से शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। जाने-अनजाने में हुए पाप भी खत्म होते हैं।
रात्रि पूजा का है विशेष महत्व
पुराणों के मुताबिक काल भैरव उपासना प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के वक्त या आधी रात में की जाती है। रात्रि जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान कालभैरव की पूजा का महत्व है। काल भैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा होती है। कुत्ते को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय काल भैरव की कथा भी सुनी या पढ़ी जाती है।
कष्ट एवं डर होता है दूर
ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान काल भैरव की पूजा करने वाले का हर डर दूर हो जाता है। उसके हर तरह के कष्ट भी भगवान भैरव हर लेते हैं। काल भैरव भगवान शिव का एक प्रचंड रूप है। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति काल भैरव जंयती के दिन भगवान काल भैरव की पूजा कर ले तो उसे मनचाही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। भगवान काल भैरव को तंत्र का देवता भी माना जाता है।
कालभैरव जयंती का महत्व
भगवान कालभैरव की पूजा करने से साधक को भय से मुक्ति प्राप्त होती है। इनकी पूजा से ग्रह बाधा और शत्रु बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान कालभैरव के विषय में ग्रंथों में जिक्र मिलता है कि अच्छे कार्य करने वालों के लिए कालभैरभ भगवान का स्वरूप कल्याणकारी हैं और अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनों लोक में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है।
इन मंत्रों के जप से भीषण से भीषण कष्टों से मिलेगी मुक्ति
श्री कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र भयाक्रांत वीभत्स विकराल प्रचंड स्वरूप है। श्री कालभैरव जयंती के दिन किसी भी शिव मंदिर में जाकर काल भैरव जी के इन मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जप करने से भीषण से भीषण कष्टों का नाश होने के साथ मरनासन्न व्यक्ति को भैरव बाबा की कृपा से जीवन दान मिल जाता है।
काल भैरव सिद्ध मंत्र
ॐ कालभैरवाय नम:।
ॐ भयहरणं च भैरव।
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।
पूजन विधि
अष्टमी तिथि को प्रातः स्नानादि करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाएं और पूजन करें। कालभैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है। शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं। अब फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान नारियल आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद वहीं आसन पर बैठकर कालभैरव भगवान का चालीसा पढ़ना चाहिए। पूजन पूर्ण होने के बाद आरती करें और जानें-अनजाने हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे। प्रदोष काल या मध्यरात्रि में जरूरतमंद को दोरंगा कंबल दान करें। इस दिन ऊं कालभैरवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। पूजा के बाद भगवान भैरव को जलेबी या इमरती का भोग लगाएं। इस दिन अलग से इमरती बनाकर कुत्तों को खिलाएं।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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