केदारनाथ ज्योतिर्लिंग यहां आने पर मिट जाते हैं सब पाप, आइए जानें केदारनाथ की कहानी

केदारनाथ भगवान शिव का पांचवा ज्योतिर्लिंग बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान युद्ध में विजय पाने के बाद यहां आने पर पांचों पांडव भी अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्त हो गए। और उनके सभी पाप मिट गए थे।
बारह ज्योतिर्लिंगों में केदरानाथ ज्योतिर्लिंग को सबसे सर्वोच्च माना गया है। प्रचीन किवदंतियों के अनुसार केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के मंदिर का निर्माण महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है। इस मंदिर की कथा बहुत ही रोचक है।
भगवान शिव का निवास स्थान है केदारनाथ धाम
केदारनाथ को भगवान शिव का निवास स्थान कहा जाता है। वैसे तो भगवान शिव समस्त चराचर जगत के स्वामी हैं। संपूर्ण जगत उन्हीं में समाया हुआ है। लेकिन केदारनाथ के विषय में एक वर्णन 'स्कंद पुराण' में भी मिलता है। भगवान शिव शंकर माता पार्वती द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। भगवान शिव माता पार्वती को बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था तभी से यह स्थान मेरे लिए (भगवान शिव) के लिए निवास स्थान के समान है। इस स्थान को स्वर्ग के सदृश्य बताया गया है।
एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव के लिए इस स्थान पर निवास करने लगे।
सावन में मिलता है पुण्य
मान्यता है कि सच्चे मन जो भी बाबा केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन के महीने में केदारानाथ के दर्शन बहुत ही शुभ माने जाते हैं।
पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया
प्रचीन कथाओं में बताया गया है कि महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडव इस स्थान पर अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए आए थे। पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। परंतु भगवान शिव पांडवों से बहुत नाराज थे। पांडव भगवान शिव से न मिल सके इसलिए भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदारधाम आ गए।
पांचों पांडव भी भगवान शिव के पीछे-पीछे यहां चले आए। तब भगवान शिव ने यहां आकर एक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे भैंसे के रुप में ही पशुओं के झुंड में मिल गए। पांडवों ने तब भी हार नहीं मानी और भीम ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया। ऐसा बताया जाता है कि भीम ने दो पहाड़ों तक अपने पैर फैला दिए। ऐसा करने के बाद सभी गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए लेकिन भगवान शिव ने यहां अपना रुप फिर बैल का बना लिया और भीम के पैरों के नीचे से जाने से मना कर दिया। तब भीम ने बैल रूपी भगवान शिव को पकड़ना चाहा। लेकिन भगवान शिव बैल के रूप में यहां धरती में समा गए. लेकिन इसी बीच भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ (कुबड़) को पकड़ लिया।
पांडवों द्वारा किए गए इन प्रयासों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और पांडवों के अपने दर्शन दिए। पांडवों ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर विनती की। तो भगवान शिव ने पांडवों को अपने सगे संबंधियों और युद्ध में मारे गए लोगों की हत्या के पाप मुक्त कर दिया। तभी से भगवान शिव की बैल की पीठ की आकृति को केदारनाथ में पूजा जाता है।
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