Kharmas 2020-2021: जानिए खरमास का अर्थ और प्रभाव, मलमास में ऐसे करें अपना कल्याण

Kharmas 2020-2021: सर्द ऋतु के परवान चढ़ते हुए मौसम में जब धीरे-धीरे कोहरे, पाले और हाड़ कंपाती ठंड की कोपलें फूटती हैं और गुनगुनी धूप के बीच जब लोगों ही नहीं बल्कि पशु, पक्षियों और जानवरों में भी सिहरन बढ़ने लगती है तथा तब ही अचानक से शुभ और मांगलिक कार्यों की गति थम जाती है। शादी ब्याह आदि मांगलिक कार्यों के मुहूर्त पंचांग के आगोश में खो जाते हैं। वहीं कालखंड यानि दिसंबर के उत्तरार्ध का समय और जनवरी के पूर्वार्ध का समय भारतीय मान्यताओं में खरमास कहलाता है। तो आइए जानते हैं खरमास के बारे में जरुरी बातें।
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खरमास का अर्थ (Meaning of Kharmas)
खर यानि कर्कश, गधा, क्रूर या दुष्ट। सामान्य भाषा में कहें, तो हिन्दू पंचांग के अनुसार सबसे अप्रिय माह। इस माह में ऊर्जा का स्रोत यानि कि भगवान सूर्य निस्तेज और क्षीणप्राय हो जाते हैं। सूर्यदेव 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में में प्रवेश करते हैं तो खरमास प्रारंभ हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विशेष बात यह है कि देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब भगवान भास्कर अपने कदम रखते हैं, वह काल खंड सृष्टि के लिए बहुत ही सोचनीय हो जाता है। और यह कालखंड जीव और जीवन के लिए पंचांग के अनुसार उत्तम समय नहीं माना जाता है। शुभ कार्य तो इस दौरान वर्जित हो जाते हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है। और इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय, अप्रत्याशित कारणों को सबब देने वाला बनता है। इसलिए लोगों के अंतर्मन में नकरात्मकता का भाव प्रस्फुटित होने लगता है।
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खरमास का प्रभाव (Effect of Kharmas )
मार्गशीर्ष मास को अगहन मास भी कहते हैं। अगहन और पौष मास का संगम ही खरमास कहलाता है। इस दौरान सूर्य की किरणें शक्तिहीन हो जाती हैं। सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही राशि के मालिक बृहस्पति ग्रह अपने मूल स्वभाव के विपरीत आचरण करने लगते हैं। धनु राशि में सूर्य के पग धरते ही मानव मस्तिष्क में तमाम खुराफातें उपजने लगती हैं। गुरु ग्रह के तेजहीन होकर बेअसर हो जाता है। और वहीं दूसरी ओर दुनिया में आतंक, भय जैसी अजीब परिस्थिति उत्पन्न होने लग जाती हैं। कहा जाता है कि इस माह के दौरान मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है।
खरमास की पौराणिक मान्यताएं (Mythological beliefs of Kharmas)
हिन्दू धर्मशास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस मास में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वात नामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दो गन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि साथ-साथ चलते हैं।
आत्म कल्याण का प्रतीक (Symbol of self welfare)
मार्गशीर्ष मास और पौष मास का यह संधिकाल अपने आपमें विशिष्ट काल है। यह माह व्यक्ति के आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है। इस दौरान व्यक्ति यदि सांसारिक कर्मों से मुक्त होकर, स्वयं के अन्तर्मन में प्रवेश करके अपने आपको तराशे, निखारे और संवारे, तो व्यक्ति अपने उत्थान की ओर चला जाता है।
शुभ कार्य अशुभ परिणाम (Auspicious work Bad results)
धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में उग्रता आने के कारण इस मास के दौरान वैवाहिक कार्य, गृह निर्माण और गृह प्रवेश, बच्चों के मुंडन संस्कार, नामकरण संस्कार आदि मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं और इन दौरान ये सभी शुभ कार्य करने पर अशुभ सिद्ध हो सकते हैं। इस दौरान शास्त्रों में इन कार्यों को वर्जित बताया गया है।
उपासना से करें अपना कल्याण (Do your welfare with worship)
ज्योतिष शास्त्रियों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा बताया गया है कि भगवान सूर्यदेव में स्वयं ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने की सामर्थ्य हैं। मान्यताओं के अनुसार सूर्य के दक्षिणायन होने पर उनके आंतरिक बल में कमी से अवांछित झमेले उत्पन्न होने लगते हैं। और वहीं दूसरी ओर सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर भगवान भास्कर सभी ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं। इसलिए इस दौरान दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए भगवान सूर्यदेव की पूजा ही कारगर मानी जाती है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोगों को इस दौरान अपने गुरु की सेवा, ध्यान, उपासना, अंतर्मन में झांकने का प्रयत्न और आकाशीय ध्वनि आदि सुनने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
भौतिक वस्तुओं व अन्न-धन की कमी से उबरने के लिए खरमाह में डूबते सूर्य की पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है। ऐसे लोगों को खरमास में ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य की पूजा करनी चाहिए। मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक लोगों को इस दौरान अपने गुरु की सेवा करनी चाहिए। और अधिक से अधिक ध्यान एवं अनहद ध्वनि सुनने का अभ्यास करना चाहिए।
इस काल का नाम ऐसे पड़ा खरमास (This period its name Kharmas)
एक बार जब भगवान सूर्य अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। और इस दौरान भगवान सूर्य को किसी भी स्थान पर रूकने की इजाजत नहीं थी। यदि इस दौरान सूर्यदेव किसी स्थान पर रूक जाते तो जनजीवन भी ठहर जाता। परिक्रमा के दौरान लगातार चलते रहने के कारण उनके रथ के घोड़े थक गए। और घोड़ों को प्यास लगने लगी। घोड़ों की ऐसी दशा देखकर सूर्यदेव को चिंता हो गई। और वो घोड़ों को लेकर एक तालाब के किनारे चले गए। ताकि घोड़ों को पानी पिला सकें। लेकिन उन्हें तभी यह आभास हुआ कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। क्योंकि रथ के रूकते ही पूरा जनजीवन भी ठहर जाता। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य ही था कि उस तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। और खर गधे को कहा जाता है। भगवान सूर्यदेव की नजर उन गधों पर पड़ी और उन्होंने अपने घोड़ों को वहीं तालाब के किनारे पानी पीने और विश्राम करने के लिए छोड़ दिया। और घोड़ों की जगह पर खर यानि गधों को अपने रथ में जोड़ लिया। लेकिन खरों के चलने की गति धीमी होने के कारण रथ की गति भी धीमी हो गई। फिर भी जैसे तैसे एक मास का चक्र पूरा हो गया। उधर तब तक घोड़ों को काफी आराम मिल चुका था। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। और हर सौर वर्ष में एक सौर मास खर मास कहलाता है। जिसे मलमास भी कहा जाता है।
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