ऐसी आरती जिसके गायन से हो जाती है ब्रह्मा, विष्णु और भोलेनाथ की अराधना

ऐसी आरती जिसके गायन से हो जाती है ब्रह्मा, विष्णु और भोलेनाथ की अराधना
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पूजन में आरती का बहुत बड़ा महत्व है। धर्मशास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि किसी भी देवता के पूजन आदि में जो कमी रह जाती है, वो आरती करने से पूरी हो जाती है। और आरती करने के बाद उस पूजन का पर्ण फल साधक को प्राप्त होता है। वहीं धर्मशास्त्रों में सभी देवी-देवताओं की अलग-अलग आरतियां बताई गईं हैं। लेकिन वहीं धर्मशास्त्रों में एक ऐसी भी आरती है। जिसके गायन से त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव की एक साथ पूजा संपन्न हो जाती है।

पूजन में आरती का बहुत बड़ा महत्व है। धर्मशास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि किसी भी देवता के पूजन आदि में जो कमी रह जाती है, वो आरती करने से पूरी हो जाती है। और आरती करने के बाद उस पूजन का पर्ण फल साधक को प्राप्त होता है। वहीं धर्मशास्त्रों में सभी देवी-देवताओं की अलग-अलग आरतियां बताई गईं हैं। लेकिन वहीं धर्मशास्त्रों में एक ऐसी भी आरती है। जिसके गायन से त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव की एक साथ पूजा संपन्न हो जाती है।

'ॐ जय शिव ओंकारा'

यह वह प्रसिद्ध आरती है जिसे शिव-भक्त प्रतिदिन नियम पूर्वक गाते हैं। लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि इस आरती के पदों में ब्रह्मा-विष्णु-महेश यानि भगवान शिव तीनों देवों की स्तुति है। आइए देखिए आरती और उसका भावार्थ।

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन (एकमुखी, विष्णु), चतुरानन (चतुर्मुखी, ब्रह्मा) और पंचानन (पंचमुखी, शिव) राजे..

हंसासन (ब्रह्मा), गरुड़ासन (विष्णु) वृषवाहन (शिव) साजे..

दो भुज (विष्णु), चार चतुर्भुज (ब्रह्मा), दसभुज (शिव) अति सोहे..

अक्षमाला (रुद्राक्ष माला, ब्रह्माजी), वनमाला (विष्णु) रुण्डमाला (शिव) धारी..

चंदन (ब्रह्मा), मृगमद (कस्तूरी विष्णु), चंदा (शिव) भाले शुभकारी (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..

श्वेताम्बर (सफेदवस्त्र, ब्रहमा जी) पीताम्बर (पीले वस्त्र, विष्णु जी) बाघाम्बर (बाघ चर्म ,शिव) अंगे..

ब्रह्मादिक (ब्राह्मण, ब्रह्मा) सनकादिक (सनक आदि, विष्णु) प्रेतादिक (शिव) संगे (साथ रहते हैं)..

कर के मध्य कमंडल (ब्रह्मा), चक्र (विष्णु), त्रिशूल (शिव) धर्ता..

जगकर्ता (ब्रह्मा) जगहर्ता (शिव) जग पालनकर्ता (विष्णु)..

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका

(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊॅंकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते हैं, आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं।

संभवतः इसी त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म् के रुप में प्रकट किया गया है

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