Krishna Vani : शादी के बाद अपनाएंगे ये टिप्स तो आपके जीवन में आएगी आनंद की बहार

Krishna Vani : युवा अवस्था भी हमारे जीवन का कितना सुन्दर काल होता है। बांहों में बल, मन में कुछ बड़ा कर जाने की चाहत, आंखों में भविष्य के सुन्दर और कोमल सपने और इसी अवस्था में मनुष्य के भीतर पनपता है प्रेम। किसी को देखकर उसपर मन मोहित हो जाता है और फिर मनुष्य अपना सबकुछ उस पर न्यौछावर कर देना चाहता है। फिर प्रेम की परिणिति विवाह में हो जाती है। परंतु यहीं से अधिकतर माता-पिता और संतान के मध्य विचारों का विरोध प्रारंभ हो जाता है।
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संतान को लगता है कि उसका चुना जीवनसाथी ही उसके लिए उपयुक्त है। और माता -पिता को लगता है कि उनकी संतान अनजाने में भूल कर रही है। संतान का तर्क होता है कि उससे विवाह किससे करना है, ये उसका अधिकार है। और माता-पिता का तर्क होता है कि अब भी जीवनसाथी चुनने की समझ संतान में है ही नहीं। तो इस अवरोध को काटा कैसे जाए, उचित निर्णय कैसे लिया जाए। इसका एक ही मार्ग है।
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अपने उत्तरदायित्व का भार और अपनों से बड़ों के मापदंड का भार विवाह करने से पूर्व ये जान लेना आवश्यक है कि विवाह केवल अपने प्रेम को पाने का मार्ग नहीं है अपितु विवाह से जीवन का एक नया द्वार भी खुलता है। और हर नए जीवन के साथ नए उत्तरदायित्व भी होते हैं। और यदि इन उत्तरदायित्वों को समझकर निर्णय लिया गया जाए तो आपका दांपत्य जीवन आनंद से भरा रहेगा। और आपको कभी पछतावा नहीं होगा कि आपने कोई अनुचित निर्णय नहीं लिया।
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