जानिए लहसून-प्याज देवी-देवताओं को क्यों अर्पित नहीं किया जाता

अकसर आपने पढ़ा और देखा होगा कि देवी-देवताओं को लहसून-प्याज नहीं चढ़ाया जाता है लेकिन कभी आपने सोचा है कि देवी और देवताओं को लहसून-प्याज क्यों नहीं चढाया जाता है। तो आइए आप भी जाने भगवान को लहसून-प्याज क्यों नहीं अर्पित किया जाता यानि भगवान को लहसून और प्याज से बना भोजन का भोग क्यों नहीं लगाया जाता है।
हमारे हिन्दू धर्म में अनेक मान्यता प्रचलित हैं, जिनका हम लोग पालन भी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार विशेषकर प्याज और लहसून भगवान को चढ़ाने से मना किया गया है। इसलिए इन दोनों को धार्मिक कार्यों में प्रयोग नहीं किया जाता है। और उपवास में भी लहसून-प्याज का प्रयोग नहीं किया जाता है।
हमारे शास्त्रों में लहसून और प्याज के पौधे को राजसिक और तामसिक श्रेणी में रखा गया है। राजसिक और तामसिक का अर्थ है जुनून और अज्ञानता में वृद्धि करना। शास्त्रों के अनुसार हमें जो भी भोजन ग्रहण करना चाहिए वह भोजन सात्विक होना चाहिए। सात्विक भोजन जैसे दूध, घी, दही, आटा, चावल, दाल और हरी सब्जियां आदि। इसके अलावा तीखें-खट्टे, चटपटे और अधिक नमकीन मिठाईयां आदि पदार्थों से निर्मित भोजन को असात्विक कहते हैं। जोकि आपके रजोगुण में बढ़ोत्तरी करते हैं। लहसून-प्याज, मांस, मछली, अंडे आदि अपने स्वभाव से ही अपवित्र होते हैं। और ये राक्षसी प्रवृति के भोजन कहलाते हैं। हमकों इन्हें सात्विक भोजन या पदार्थों के रूप में कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए। अन्यथा अशांति, रोग और चिंताएं आपके जीवन में बिन बुलाए मेहमान की तरह घर में प्रवेश कर जाती हैं। इसलिए पुराणों में लहसून और प्याज का प्रयोग रसोईघर में निषेध माना गया है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है।
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से अमृत का कलश निकला तब भगवान विष्णु सब देवी-देवताओं को अमर होने के लिए अमृत बांट रहे थे। उसी दौरान राहुकेतु नाम का राक्षस भी देवताओ के बीच आकर बैठ गया। और भगवान ने गलती से उन्हें भी अमृत का पान करा दिया। जैसे ही देवताओं को इसका पता चला तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस के धड़ को सिर से अलग कर दिया। सिर धड़ से अलग रहने से पहले ही उनके शरीर में अमृत की कुछ बूंदें पहुंच गईं और ऐसे में राक्षसों का सिर और धड़ अमर हो गया।
जब भगवान विष्णु ने उन पर प्रहार किया था तो उनके रक्त की कुछ बूंदें नीचे गिर गई थीं। और कालांतर में राहुकेतु के रक्त की उन्हीं बूंदों से प्याज और लहसून की उत्पत्ति हुई। जिसकी वजह से लहसून और प्याज को खाने के बाद मुंह से गंध आती है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि प्याज और लहसून में राक्षसों का वास है। हालांकि अमृत से उत्पन्न लहसून और प्याज में रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। लेकिन राक्षस से उत्पन्न होने के कारण लहसून-प्याज को देवी-देवताओं से दूर रखा जाता है। और भगवान को नहीं चढ़ाया जाता।
इसके अलावा प्याज और लहसून के ज्यादा प्रयोग से मनुष्य का मन पूजा-अर्चना से भटकता है। और दूसरे कार्यों में अधिक लगने लगता है। यही वजह है कि हम पूजा-पाठ में इन दोनों का प्रयोग नहीं करते हैं।
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