Lohri 2022: लोहड़ी का देवी सती से क्या संबंध है, जानें इसके प्रसाद और व्याहना की ये विशेष बातें

Lohri 2022: लोहड़ी के पर्व का ध्यान मन में आते ही मन में भांगड़ा, गिद्धा, मूंगफली और रेवड़ी की तस्वीर उभरने लगती है। तथा ऐसा लगने लगता है कि, अब सर्दी तो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि आखिर हम इस पर्व को क्यों मनाते हैं और इस पर्व से जुड़ी खास बातें क्या-क्या हैं। तो आइए जानते हैं लोहड़ी से जुड़ी सारी खास बातों के बारे में...
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मकर संक्रांति से पहले वाली रात को सूर्यास्त के बाद मनाया जाने वाला ये पर्व पंजाब प्रांत का सबसे बड़ा पर्व है। लोहड़ी का अर्थ है 'ल' यानि कि लकड़ी, 'ओ' यानि गोहा अर्थात सूखे हुए उपले और 'ड़ी' यानि कि रेवड़ी।
दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के योगाग्नि दहन की याद में ही लोहड़ी की अग्नि जलायी जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को मां के घर से त्योहारी अर्थात वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी और फल आदि भेजा जाता है।
लोहड़ी का प्रसाद
लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बच्चे लोहड़ी के लोकगीत को गाकर लकड़ी और उपले इक्टठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मौहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलायी जाती है। मौहल्ले या पूरे गांव के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है।
रेवड़ी और कहीं-कहीं मक्के के भुने हुए दाने भी अग्नि को भेंट किए जाते हैं और यहीं चीजें प्रसाद के रूप में वहां मौजूद लोगों के बीच बांटी जाती हैं। वहीं घर लौटते समय लोहड़ी में से 02-04 दहकते हुए कोयले प्रसाद के रूप में घर लाने की परंपरा है।
लोहड़ी व्याहना
शहरों के शरारती लड़के दूसरे मौहल्ले में जाकर लोहड़ी से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मौहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं, ये प्रक्रिया लोहड़ी व्याहना कहलाता है। कई बार इस प्रक्रिया में छीना-झपटी भी हो जाती है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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