Lunar Eclipse 2020 November : चंद्र ग्रहण 2020 में कब है, सूतक काल का समय,ग्रहण की धार्मिक मान्यता और चंद्र ग्रहण की कथा

Lunar Eclipse 2020 November : ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इसलिए जब भी चंद्रमा पर ग्रहण (Grahan) लगता है तो इसका सीधा असर मन पर ही होता है। साल 2020 के नवंबर महीने में आखिरी चंद्र ग्रहण लगने वाला है। जो एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा।साल का यह आखिरी चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) वृषभ राशि और रोहिणी नक्षत्र में होगा। इसके अलावा क्या है चंद्र ग्रहण से जुड़ी जानकारी आइए जानते हैं...
चंद्र ग्रहण 2020 तिथि (Chandra Grahan 2020 Date)
30 नवंबर 2020
चंद्र ग्रहण प्रारंभ और समाप्त होने का समय (Chandra Grahan Starting And Ending Time)
उपच्छाया से पहला स्पर्श - दोपहर1 बजकर 04 मिनट (30 नवंबर 2020)
परमग्रास चन्द्र ग्रहण - दोपहर 3 बजकर 13 मिनट (30 नवंबर 2020)
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श - शाम 5 बजकर 22 मिनट (30 नवंबर 2020)
चंद्र ग्रहण 2020 सूतक काल का समय (Chandra Grahan 2020 Sutak Kaal Timing)
सूतक काल प्रारंभ- लागू नहीं
सूतक काल समपाप्त -लागू नहीं
चंद्र ग्रहण की धार्मिक मान्यता (Chandra Grahan Ki Dharmik Manyata)
हिंदू ग्रंथों के अनुसार चंद्र ग्रहण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इसी कारण से जब भी चंद्रमा पर ग्रहण लगता है तो इसका सीधा असर मन पर होता है। चंद्र ग्रहण का असर उन लोगों पर अधिक पड़ता है। जिनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण पीड़ित हो या उनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष बन रहा है। इतना ही चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पानी को अपनी और आकर्षित करता है। जिससे समुद्र में बड़ी -बड़ी लहरें काफी ऊचांई तक उठने लगती है।चंद्रमा को ग्रहण के समय अत्याधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसी कारण से चंद्र ग्रहण के समय हवन, यज्ञ, और मंत्र जाप आदि किए जाते हैं
चंद्र ग्रहण की कथा (Chandra Grahan 2020 Ki Katha)
चंद्र ग्रहण की कथा के अनुसार जब सृष्टि का निर्माण भी नहीं हुआ था। उससे पहले समुद्र मंथन किया गया। जिसमें से अमृत निकला और इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और दानवों के बीच में विवाद हो गया। जिसे सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और देवता और असुरों को एक पंक्ति में बैठा दिया। उन देवताओं की पंक्ति में छल से राहु जा बैठा और उसे अमृत को ग्रहण कर लिया।
जिसके बारे में सूर्य और चंद्रमा भगवान विष्णु को बता देते हैं और भगवान विष्णु राहु का सिर अपने सुदर्शन चक्र से धड़ से अलग कर देते हैं। जिसके बाद राहु दो हिस्सों में बंट गया। क्योंकि राहु ने अमृत ग्रहण कर लिया था। इसलिए सिर वाला हिस्सा राहु के नाम से और धड़ वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण से राहु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानकर पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का ग्रास कर लेता है। जिसकी वजह से कुछ देर के लिए चंद्रमा छिप जाता है।इसी को ही चंद्रग्रहण कहा जाता है
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