Maha Navami 2020 Mein Kab Hai : महानवमी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त,महत्व,पूजा विधि और कथा

Maha Navami 2020 Mein Kab Hai : महानवमी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त,महत्व,पूजा विधि और कथा
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Maha Navami 2020 Mein Kab Hai : अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानवमी मनाई जाती है। महानवमी का दिन नवरात्रि पूजन का आखिरी दिन होता है। इस दिन छोटी- छोटी कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराया जाता है और दक्षिणा देकर उन्हें विदा किया है। कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रि व्रत भी पूर्ण हो जाता है तो चलिए जानते हैं महानवमी 2020 में कब है (Maha Navami 2020 Mein Kab Hai), महानवमी का शुभ मुहूर्त (Maha Navami Subh Muhurat), महानवमी का महत्व (Maha Navami Importance),महानवमी की पूजा विधि (Maha Navami Puja Vidhi) और महानवमी की कथा (Maha Navami Story)

Maha Navami 2020 Mein Kab Hai : महानवमी को नवरात्रि (Navratri) का आखिरी दिन माना जाता है। इस दिन कन्या पूजन (Kanya Pujan) के साथ ही मां दुर्गा को भी विदा कर दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा कन्या रूप में नवरात्रि पर धरती का भ्रमण करती है और इसी कारण से इस दिन कन्या पूजन को विशेष महत्व दिया जाता है तो चलिए जानते हैं महानवमी 2020 में कब है, महानवमी का शुभ मुहूर्त, महानवमी का महत्व,महानवमी की पूजा विधि और महानवमी की कथा।


महानवमी 2020 तिथि (Maha Navami 2020 Tithi)

24 अक्टूबर 2020

महानवमी 2020 शुभ मुहूर्त (Maha Navami 2020 Shubh Muhurat)

नवमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 06 बजकर 58 मिनच से (24 अक्टूबर 2020)

नवमी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 07 बजकर 41 मिनट तक (25 अक्टूबर 2020)


महानवमी का महत्व (Maha Navami Ka Mahatva)

नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजन करने के बाद महानवमी के दिन नौ वर्ष से छोटी कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराया जाता है। इस दिन कन्याओं को भोजन कराकर नवरात्रि व्रत की सामप्ति की जाती है। माना जाता है कि कन्याओं में माता का रूप होता है और बिना कन्या पूजन के नवरात्रि व्रत अधूरा माना जाता है। नवरात्रि नौ दिनों तक मां दुर्गा का विधिवत पूजन और कन्या पूजन के बाद माता को विदा कर दिया जाता है।

कन्या पूजन में छोटी- छोटी कन्याओं को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है और उनका विधिवत पूजन करके उन्हें प्रेम सें भोजन कराया जाता है। जिसके बाद उन्हें उपहार देकर विदा किया जाता है और उनका आर्शीवाद लिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा कन्या रूप में धरती पर भ्रमण करती हैं और भक्तों को अपना आर्शीवाद प्रदान करती हैं। इसी कारण से महानवमी को कन्या पूजन करना आवश्यक माना गया है।


महानवमी की पूजा विधि (Maha Navami Ki Puja Vidhi)

1.महानवमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठना चाहिए नहाकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजा का संकल्प लेना चाहिए।

2. इसके बाद माता की चौकी के आगे जहां आपने पूरे नौ दिनों तक पूजा की है।वहीं पर महानवमी की पूजा भी करें।

3. मां दुर्गा का रोली, कुमकुम से तिलक करें और उन्हें लाल फूलों की माला पहनाएं।

4.इसके बाद गोबर के उपले से अज्ञारी अवश्य करें और उसमें लौंग, कपूर और बताशे की आहुति अवश्य दें और मां दुर्गा की आरती करें।

5. पूजन संपन्न करने के बाद नौ कन्याओं का भी पूजन करें और उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा अवश्य दें। इसके बाद उनका आर्शीवाद अवश्य लें।


महानवमी की कथा (Maha Navami Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ।

यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं। फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र।

अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं।

इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।

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