Maha Shivratri Special: जानिए महाशिवरात्रि का महत्व और भगवान शिव को प्रसन्न करने का मंत्र

Maha Shivratri Special: जानिए महाशिवरात्रि का महत्व और भगवान शिव को प्रसन्न करने का मंत्र
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Maha Shivratri Special: महाशिवरात्रि के अवसर पर शास्त्रीय विधि से वेदमंत्रों के द्वारा रात्रि के चारों प्रहरों की विधिपूर्वक की जाने वाली पूजा का फल उसी प्रकार प्राणिमात्र को मिलता है, जिस प्रकार सूर्यनारायण के उदय होते ही समस्त जगत को प्रकाश मिलता है।

आज महाशिवरात्रि का पर्व है। इस दिन खासतौर पर भगवान शिव और मां पर्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। यूं तो कभी भी भगवान भोलेनाथ पूजा करने से अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाते हैं। हालांकि, आज के दिन जो निश्छल मन और पूर्ण सर्मपण के साथ जो भी शिवभक्त विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है तो उस पर शिव-शंकर की विशेष कृपा बरसती है। पुराणों में इस दिन के महात्म्य और पूजन विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसके बारे में आचार्य डॉ. गोविंद बल्लभ जोशी (Acharya Dr. Govind Ballabh Joshi) द्वारा जानकारी दी गई है, आइए जानते हैं...

महाशिवरात्रि को भगवान शिव की अखंड आराधना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। वस्तुतः शिव ही चराचर के स्वामी हैं। वही जड़ और चेतन के नियंता हैं। इसीलिए शिव को भोला भंडारी और महादेव कहा जाता है। कहा जाता है कि प्रकृति और प्राणी मात्र का सीधा संबंध महादेव शिव से होता है। शास्त्रों में कहा गया है, भगवान शिव कल्प वृक्ष की भांति मन इच्छित फल देने वाले हैं। 'प्रणमामि शिवं शिव कल्पतरुम्' शिव को आशुतोष भी कहा जाता है, अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता। शिव सभी के हैं, देवताओं के आराध्य, मनुष्यों में आराध्य, यक्ष गंधर्व, किन्नर, नाग, सुर-असुर सभी शिव की भक्ति करते हैं, इसीलिए शिव-पार्वती समस्त जगत के माता-पिता हैं। महाकवि कालिदास ने लिखा है कि जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ। शिव ही सर्वोच्च-अनंत हैं।।

भारतवर्ष में शिव आराधना का प्राचीनकाल से ही महत्व है। प्रत्येक माह की कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है किंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि होती है। पुराणों में वर्णित है कि पद्मकल्प के प्रारंभ में जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ तो भगवान शिव एक ज्योतिर्मय स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट हुए और कहा ब्रह्माजी इस स्तंभ के ऊपर की ओर और विष्णुजी इसके निचले हिस्से की ओर जाकर पता करें कि इसका आदि-अंत कहां है? जो सबसे पहले पता कर लेगा, वहीं ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठ होगा। किंतु ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत न मिल पाया। ब्रह्माजी पहले लौट आए और शिव से बोले मुझे ज्यातिर्लिंग का स्रोत प्राप्त हो गया। ब्रह्माजी के मिथ्या वचन से नाराज होकर शिव ने दंड स्वरूप उनका एक मुख काट दिया। तभी से ब्रहमा चतुर्मुखी कहलाए। इससे पहले ब्रहमाजी के पांच मुखों का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार ब्रह्माजी और विष्णुजी दोनों ने प्रेमपूर्वक उस ज्योतिर्लिंग की आराधना की और कहा शिव ही सर्वोच्च-सर्वश्रेष्ठ हैं, अनंत हैं। तभी से महाशिवरात्रि का महात्म्य भी त्रिलोक में प्रकट हुआ।

सरलता से होते हैं प्रसन्न

इसी क्रम में एक आख्यान का वर्णन पुराकथाओं में मिलता है। इसके अनुसार एक शिकारी आखेट के लिए वन गया और वहीं भटक गया। रात्रि हो गई। उस दिन वर्षा भी हो रही थी। अत: वर्षा से बचने के लिए वह एक वृक्ष की टहनियों के मध्य बैठ गया और सारी रात वहीं बिताई। प्रात:काल वृक्ष से उतरने पर उसे भगवान शिव ने प्रसन्नतापूर्वक दर्शन दिए और वह आखेटक, शिव का अनन्य भक्त कहलाया। वस्तुतः भीगते हुए आखेटक के हाथों से होकर, वृक्ष के मूल पर स्थित शिवलिंग पर सारी रात्रि जल गिरता रहा। वह शिवरात्रि थी। जाने-अनजाने में आखेटक के हाथ से सारी रात शिवलिंग पर गिरा जल शिव ने अपनी आराधना के रूप में स्वीकार किया। तभी तो शिव को भोला भंडारी कहा जाता है। वे सभी को एकसमान दृष्टि से देखते हैं। वस्तुत: समाज में समन्वय एवं एकता स्थापित करने वाली है, भगवान शिव की आराधना।

सभी प्राणियों पर करते हैं कृपा

शिव-भक्ति वर्ण, जाति, लिंग और जड़-चेतन के भेद से परे है। उनकी भक्ति-आराधना में इन भेदों का कोई महत्व नहीं रहता है। जो सबके हैं, वही शिव हैं। जो सबमें हैं, वही शिव हैं। शिव ही कल्याण, सुख हैं, संपत्ति हैं, आनंद से परे परमानंद हैं। शिव आराधना की भाव प्रधानता के कारण भारतीय संस्कृति में विश्व बंधुत्व है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शास्त्रीय विधि से वेदमंत्रों के द्वारा रात्रि के चारों प्रहरों की विधिपूर्वक की जाने वाली पूजा का फल उसी प्रकार प्राणिमात्र को मिलता है, जिस प्रकार सूर्यनारायण के उदय होते ही समस्त जगत को प्रकाश मिलता है। साथ ही समस्त भक्तजन अपने मनोभावों के अनुसार, भजन, पूजन, अर्चन, जलाभिषेक और दर्शन मात्र से भी शिव कृपा के पात्र बन जाते हैं।

व्रत-पूजा का विधान

महाशिवपुराण में कहा गया है, शिवरात्रि के दिन व्रत करने वालों को प्रातःकाल सूर्योदय से दो घंटे पहले उठकर शौच कर्म से निवृत होकर गंगा आदि नदियों का स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए। मस्तक पर त्रिपुंड, चंदन अथवा भस्म धारण करना चाहिए। यदि उपलब्ध हो तो रुद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए। घर के मंदिर में यदि नर्मदेश्वर शिवलिंग हों तो उस पर अन्यथा स्वच्छ मिट्टी या चावल के आटे से एक थाली में ग्यारह शिवलिंग स्थापित कर, उनका जलाभिषेक कर चंदन, भस्म चावल, तिल, बेलपत्र, भांग और धतूरे के पत्तों को चढ़ाकर भगवान शिव की आरती करें। यही क्रम शिवालय में जाकर वहां स्थापित शिवलिंग पर करें। यदि भगवान शिव को दूध चढ़ाना चाहें तो उसे तांबे अथवा पीतल के लोटे से नहीं चढ़ाएं, क्योंकि इससे वह विष तुल्य माना गया है। इनके अतिरिक्त किसी भी अन्य धातु या मिट्टी के पात्र से दूध अर्पित कर सकते हैं। जो भक्त-साधक शिवरात्रि के चारों पहरों में इस प्रकार पूजा-अर्चना करते हैं तो और भी आनंददायक होगा अन्यथा शिवालयों में विद्वान ब्राह्मण आचार्यजनों द्वारा की जा रही चारों पहर के पूजन में सम्मिलित होकर पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं। शिवरात्रि को जागरण का विशेष महत्व है। अत: अपने घर के पूजा स्थान में, शिवालयों के प्रांगण में, तीर्थ स्थलों में विल्व वृक्ष के पास किया जाने वाला जप एवं शिव भजन प्राणियों को अनंत पुण्य देता है।

कल्याणकारी है शिव का जाप

शिवरात्रि को महामृत्युंजय मंत्र का जाप, नमः शिवाय और शिवाय नमः का जाप मनुष्य के कल्याण का कारण बनता है। शिव रात्रि-जागरण के बाद प्रातः काल भगवान की स्तुति प्रार्थना और प्रदक्षणा कर अपने घर लौटना चाहिए। हर-हर महादेव का उद्घोष मनुष्य के सभी कष्टों को दूर करता है, जिसको इस प्रकार उच्चारित करें-

काल हर, कंटक हर, दुख हर, दारिद्र हर, रोग हर, शोक हर, हर-हर-हर महादेव।।

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