Mahashivratri 2023: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में कब से मनाई जाएगी शिव नवरात्रि? जानें मंदिर का इतिहास

Mahashivratri 2023: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में कब से मनाई जाएगी शिव नवरात्रि? जानें मंदिर का इतिहास
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उज्जैन में महाशिवरात्रि और शिव नवरात्रि को लेकर महाकालेश्वर मंदिर में विशेष तैयारियां अंतिम चरण हैं। महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल की पूजन विधि के अनुसार, 10 फरवरी को महा शिव नवरात्रि के पहले दिन शिव पंचमी को पूजन की जाएगी। इस दिन महादेव को हल्दी और चंदन से श्रृंगार किया जाएगा।

Mahashivratri 2023: उज्जैन में महाशिवरात्रि और शिव नवरात्रि को लेकर महाकालेश्वर मंदिर में विशेष तैयारियां अपने चरम सीमा पर है। महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल की पूजन विधि के अनुसार 10 फरवरी को शिव नवरात्रि के पहले दिन शिव पंचमी का पूजन होगा। इस दिन पूरे विधि पूर्वक महादेव को हल्दी चढ़ाई जाएगी। इस दिन पंडितों द्वारा महाकाल का रूद्र पाठ कर भोग लगाकर संध्या के बाद विशेष श्रृंगार कर पूजा अर्चना की जाएगी। शिव नवरात्रि में महाकाल की अलग-अलग विधि से पूजा होगा। पहला दिन महाकाल का चन्दन से श्रृंगार कर सोला और दुपट्टा का वस्त्र धारण कर मुकुट सहित मुंडमाला, आभूषणों से सुशोभित किया जाएगा। दूसरे दिन महाकाल के नाग का श्रृंगार, तीसरे दिन घटे घोट श्रृंगार, इसके बाद चौथे दिन छबीना श्रृंगार, वहीं पांचवे दिन होलकर रूप का श्रृंगार, छठे दिन महाकाल का महेश रूप का श्रृंगार, सातवें दिन उमा-महेश रूप का श्रृंगार किया जाएगा। इसी प्रकार महाकाल के आठवें दिन महाकाल के शिव तांडव का श्रृंगार और शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ के सप्तधान का श्रृंगार किया जाएगा। इस दिन पूजन में कम से कम महाकालेश्वर मंदिर के चारों ओर 400 से अधिक कर्मचारियों को तैनात किया जाएगा।

क्या है महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का मनोहर वर्णन पुराण, महाभारत और कालिदास जैसे महान कवियों की रचनाओं में वर्णन है। इस उज्जयिनी मंदिर की प्रशंसा कालिदास ने मेघदूत में की है। इस मंदिर का इतिहास बेहद ही रोचक है। कहा जाता है कि अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य महादेव के परम भक्त थे और भगवान शिव के आशीष से वे लगभग 132 सालों तक उज्जैन नगरी पर शासन किया। यह महाकालेश्वर मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।

बताया जाता हैं कि 1235 ई. में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। आक्रांताओं के आक्रमण से सुरक्षित बचाने के लिए स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को पास के कुएं में 550 वर्षों तक रखा गया था। और बाद में औरंगजेब ने मंदिर के बचे अवशेषों से एक मस्जिद का निर्माण करा दिया था। सन 1732 में जब मुगलों को शूरवीर राणोजी राव ने हरा दिया। राणोजी ने मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाया और मंदिर में ज्योतिर्लिंग को स्थापना किया।

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