Mahashivratri Special Story: जानें किस प्रकार हुई थी महाशिवरात्रि की शुरुआत, यहां पढ़ें शिकारी और हिरण की पूरी कहानी

Mahashivratri Special Story: महाशिवरात्रि का नाम सुनते ही भक्तों के मन में एक अलग ही खुशी होती है, क्योंकि महादेव को कौन नहीं पूजता है। देवों के देव महादेव के नाम से हर माह शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। लेकिन साल की दो बड़ी शिवरात्रि हैं। आखिरकार लोग इस पर्व को करते क्यों हैं? क्या इसका कोई प्रमाण है? ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर के लिए आज इस खबर में हम आपको महादेव से जुड़ी एक कहानी बता रहे हैं, जिसके बारे में आपने सुना भी होगा।
महाशिवरात्रि पर एक शिकारी की व्रत कथा
एक बार माता पार्वती ने भगवान भोले नाथ से पूछा कि ऐसा कौन सा उत्तम और आसान पर्व है, जिसको करने पर प्राणी आपकी कृपा आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। तब भगवान भोले शंकर ने शिवरात्रि की व्रत कथा के बारे में एक कहानी सुनते हुए कहा कि हे देवी पार्वती आपको एक कथा सुनाता हूं, जो सभी के लिए लाभदायक साबित होगा। एक बार एक चित्रभानु नामक शिकारी था। वह पशुओं को मारकर अपना जीवन का पालन करता था। शिकारी एक साहूकार का कर्जा लिया था जिसके कारण साहूकार ने शिकारी से क्रोधित होकर शिव मठ में बंदी बना लिया और वहीं छोड़ कर चला गया। संयोगवश जिस दिन शिकारी को साहूकार ने शिव मठ में बंदी बना कर रखा था। उस दिन शिवरात्रि थी।
महाशिवरात्रि की कहानी
शिव मठ में भगवान शिव शंकर से संबंधित धार्मिक बातें हो रही थी और शिकारी शिव-संबंधी सभी धार्मिक बातों को सुन रहा था। शिकारी ने चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि की कथा सुनी। शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को बुलाया और ऋण चुकाने के लिए कहा। शिकारी ने साहूकार को कर्ज अगले दिन लौटाने के लिए वचन दे दिया। शिकारी के वचन सुनकर साहूकार ने उसे जाने दिया। शिकारी रोज की भांति जंगल में शिकार के लिए निकल गया। दिन भर भूख-प्यास से तड़प रहा था।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
भूख के कारण शिकारी एक तालाब के पास बेल-वृक्ष पर रात गुजारने के लिए ठहर गया था। संयोग से उस बेल-वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग बेलपत्र से ढका हुआ था। शिकारी इस बात से अजान था। थोड़ी देर के बाद शिकारी भूख के कारण टहनियां ऐसे ही तोड़ कर फेंक रहा था। फेंकी गई पत्तियां नीचे शिवलिंग पर गिर रही थी। इस प्रकार दिन भर खाली पेट रहकर उसने अपना व्रत भी कर लिया और उसे पता भी नहीं चला। रात्रि के एक पहर बीत जाने पर तालाब के पास एक गर्भिणी मृग (गर्भ धारण) पानी पीने के लिए आई। शिकारी ने मृग को देखकर धनुष पर तीर चढ़ा कर जैसे ही प्रत्यंचा खींची, उसी समय मृग बोली- हे शिकारी मैं गर्भिणी हूं और जल्द ही गर्भपात करने वाली हूं। मृग ने कहा कि तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो बिल्कुल ठीक नहीं है। मृग ने कहा कि मैं अपने बच्चे को जन्म देकर जल्द ही तुमारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना। मृग की बात सुनकर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
महाशिवरात्रि पर शिकारी हिरणी की कहानी
रात बीती जा रही थी शिकारी की भूख बढ़ती जा रही था। कुछ देर बाद झाड़ियों से एक और मृग बाहर निकली। मृग को देखकर शिकारी खुश हो गया और तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ाया। शिकारी को देख मृग ने बड़े ही विनम्रतापूर्वक आग्रह किया कि हे पारधी मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने पति की खोज में इधर-उधर भटक रही हूं। मृग ने शिकारी से कहा कि मैं अपने पति से मिलकर जल्द ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी को दया गई और उसे भी जाने दिया। शिकारी के हाथ से दो बार शिकार जा चुके थे।
शिकारी और हिरण की कथा
भूख के कारण उसका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। रात का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी अचानक एक मृग अपने बच्चे के साथ उधर से गुजर रही थी। शिकारी के पास यह सुनहरा मौका था। शिकारी शीघ्र धनुष पर तीर चढ़ाकर तीर को छोड़ने ही वाला था। तब तक मृग बोली कि हे शिकारी मैं अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर आ जाऊंगी। शिकारी ने कहा कि मैंने पहले भी दो को छोड़ चुका हूं। तुम्हें छोड़ दूं मैं मूर्ख नहीं हूं। मेरे बच्चे और पत्नी भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। तब मृग ने उत्तर दिया जिस तरह तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है ठीक उसी प्रकार मुझे भी सता रही हैं। मृग ने कहा कि मैं तुम्हें वचन देती है। मैं इनके पिता के पास छोड़कर शीघ्र ही लौट आ जाऊंगी।
महाशिवरात्रि पर शिकारी और हिरण की कथा
मृग की ये बात सुनकर शिकारी को दया आ गई और उसे जाने दिया। शिकारी अभी भी भूख के मारे बेल के पत्ते तोड़-तोड़ कर फेंक रहा था। अभी भी बेल के पत्ते नीचे शिवलिंग पर गिर रहे थे। ऐसे ही सारी रात प्रक्रिया चलती रही। सारे मृग के बातों को सुनकर शिकारी का हृदय कोमल हो गया था। कुछ देर बाद तीनों मृग शिकारी के पास आ गए। ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके। लेकिन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और सात्विकता देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। शिकारी के आंखों से आंसू निकलने लगे। शिकारी ने तीनों मृग को छोड़ दिया। शिकारी के इस कामों को देवलोक से समस्त देवी-देवता इस घटना को देख रहे थे। तब भोले नाथ शिकारी के इस तरह के बर्ताव को देखकर प्रसन्न हो गए और शिकारी के पास आकर प्रकट हुए।
महाशिवरात्रि पर शिकारी को भगवान शिव दे दिए थे दर्शन
शिकारी अपने सामने भगवान भोले नाथ को देखकर अति प्रसन्न हो गया। भगवान शिव ने शिकारी को वरदान मांगने को कहा तब शिकारी ने कहा कि हे प्रभु जीवन में मैंने इतने पाप किए हैं कि कोई संशय नहीं है और आप मुझे से वरदान मांगने को कह रहे है आखिर क्यों? तब भगवान शिव ने कहा कि हे भक्त तुमने सब पापों से मुक्ति पा लिया है। तुमने फाल्गुन मास के चतुर्थी के दिन व्रत करके शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाकर और कथा सुनकर मुझे प्रसन्न किया है। तुम्हारे सब पाप मिट गए हैं। तब शिकारी महादेव से आशीर्वाद लेकर अपने घर को चला गया और शिव की भक्ती में लीन हो गया।
महाशिवरात्रि का व्रत है सबसे उत्तम
शंकर जी ने पार्वती से कहा कि हे देवी मैने ये व्रत सबसे उत्तम बताया है। जिसके उपवास मात्र से बड़े से बड़े पापी भी मुक्ति मिल जाती है। ये व्रत सबसे खास बताया गया है और जो कुंवारी कन्या इस व्रत को करती हैं वह मेरे सामान पति की प्राप्ति होती है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
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