Mahashtami 2020 Date : महाष्टमी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और मां दुर्गा की कथा

Mahashtami 2020 Date : महाष्टमी के दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन कन्या पूजन को विशेष माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में मां कन्याओं में विराजती हैं और जो भी व्यक्ति महाष्टमी के दिन कन्या पूजन नहीं करता। उसके नवरात्रि के व्रत निष्फल हो जाते हैं तो चलिए जानते हैं महाष्टमी 2020 में कब है, महाष्टमी का शुभ मुहूर्त, महाष्टमी का महत्व,महाष्टमी की पूजा विधि और मां दुर्गा की कथा।
महाष्टमी 2020 तिथि (Mahashtami 2020 Tithi)
23 अक्टूबर 2020
महाष्टमी 2020 शुभ मुहूर्त (Mahashtami 2020 Shubh Muhurat)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 06 बजकर 57 मिनट से (23 अक्टूबर 2020)
अष्टमी तिथि समाप्त - अगल दिन सुबह 06 बजकर 58 मिनट तक (24 अक्टूबर 2020)
महाष्टमी का महत्व (Mahashtami Importance)
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजन के साथ ही मां दुर्गा को विदा कर दिया जाता है। कुछ लोग अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं तो वहीं कुछ लोग नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं। माना जाता है कि बिना कन्या के पूजन के नवरात्रि के व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। महाष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार महाष्टमी के दिन कन्याओं में मां दुर्गा का वास होता है और जो भी व्यक्ति नवरात्रि का व्रत करके कन्या पूजन करता है।उसे मां दुर्गा का पूर्ण आर्शीवाद प्राप्त होता है।
महाष्टमी पूजा विधि (Mahashtami Puja Vidhi)
1.महाष्टमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठना चाहिए नहाकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
2.इसके बाद जहां पर आप नवरात्रि के पूरे नौ दिन पूजा करते आए हैं। वहीं पर महाष्टमी की पूजा भी करें।
3.पूजा में मां को रोली या कुमकुम का तिलक करें और उन्हें फूलों की माला पहनाएं और उन्हें फूल अर्पित करें।
4. इसके बाद गोबर के उपले से अज्ञारी करें और उसमें लौंग, कपूर और बतासे चढ़ाएं और मां दुर्गा की कपूर से आरती उतारें।
5.मां दुर्गा की आरती करने के बाद नौ वर्ष से छोटी नौ कन्याओं का पूजन करें और दक्षिणा सहित विदा करें।
मां दुर्गा की कथा (Maa Durga Ki Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।
भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।
फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया।
मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।
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