जानिए मार्गशीर्ष मास का महत्व, भगवान श्रीकृष्ण ने कही थी ये बात

हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवां मास अगहन कहलाता है। अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से भी जाना जाता है। अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई कारण हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में और अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक स्वरूप है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस मास का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं। जिसमें से एक है मृगशिरा नक्षत्र । इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है।
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भागवद गीता में भी श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा था कि सभी माह में मैं मार्गशीर्ष हूं। इसलिए यह माह भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरुप है। इस माह में श्रृद्धा और भक्ति के द्वारा अर्जित पुण्य के बल पर व्यक्ति को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान, पुण्य का विशेष महत्व है। श्रीमदभागवद गीता के दसवें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं मार्गशीर्ष माह के बारे में कहा है।
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।।
अर्थात मैं सामवेद के गीतों में बृहत्साम हूं और छन्दों में गायत्री हूं। समस्त महीनों में मैं मार्गशीर्ष (अगहन) तथा समस्त ऋतुओं में फूल खिलने वाली बसन्त ऋतु हूं।
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श्रीकृष्ण भगवान ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष मास में यमुना स्नान से मैं सहज ही सबको प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से मार्गशीर्ष माह में पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व माना जाता है। इस मास में नदी में स्नान करते समय तुलसी की जड़ की मिट्टी साथ में लेकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। स्नान के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए 'ऊँ नमो नारायणाय' मंत्र का जप करना शुभ फलदायी माना जाता है।
कहा जाता है कि मार्गशीर्ष मास में जो लोग भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का जप करता है उसकी सभी इच्छाएं और मनोकामनाएं भगवान श्रीकृष्ण जल्दी ही पूरी करते हैं।
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