Narak Chaturdashi 2021 : नरक चतुर्दशी पर जानें यमराज ने क्यों लिया था शुद्र योनी में जन्म

Narak Chaturdashi 2021 : नरक चतुर्दशी 03 नवंबर 2021 यानि आज (बुधवार) को मनायी जाएगी। आज के दिन हिन्दू सनातन धर्म में यमराज का पूजन किया जाता है और घर के मुख्य द्वार पर उनके नाम से दीपक जलाएं जाते हैं। माना जाता है कि यमराज किसी की भी गलती को क्षमा नहीं करते, लेकिन एक बार यमराज से भी एक ऐसी गलती हो गई थी। जिसके कारण उन्हें शुद्र योनी में जन्म लेना पड़ा था। तो आइए आज नरक चतुर्दशी के अवसर पर जानते हैं कि किस गलती के कारण यमराज को शुद्र योनी में जन्म लेना पड़ा।
यमराज के शुद्र योनी में जन्म की कथा
प्राचीन काल में माण्डव्य नामक एक ऋषि हुए थे। जो कि धर्मज्ञ, सत्यावादी और महान तपस्वीं थे।वह अपने आश्रम के बाहर अपने दोनों हाथ उठाकर और मौन व्रत धारण करके तपस्या किया करते थे। एक दिन माण्डव्य ऋषि अपने आश्रम के बाहर तपस्या कर रहे थे। तब ही कुछ लुटेरे वहां पर आए और आकर मुनि के आश्रम में छिप गए। उनके पीछे ही राजा के कुछ सिपाही लुटेरों का पीछा करते हुए वहां पर पहुंच गए और पहुंचकर माण्डव्य ऋषि से पूछा की महात्मा कि क्या आपने किसी लुटेरे को यहां से भागते हुए देखा है। शीघ्र बताइए हम उनका पीछा कर रहे हैं।
वहीं मौन व्रत रहने के कारण ऋषि कुछ नही बोले। तब राजा के सैनिकों ने ऋषि के आश्रम की तलाशी प्रारंभ कर दी और चोरी के समान सहित सभी चोरों को भी पकड़ लिया। इसके बाद सिपाहियों ने चोरों के साथ ऋषि माण्डव्य को भी राजा के समक्ष पेश किया और राजा ने सिपाहियों की सारी बात सुनने के बाद सभी को सूली पर चढ़ाने का आदेश दे दिया और सिपाहियों ने चोरों के साथ माण्डव्य ऋषि को भी सूली पर चढ़ा दिया। माण्डव्य ऋषि को सूली पर चढ़े हुए बहुत दिन बीत गए बिना कुछ खाए पिए ऋषि सूली पर लटके रहे। लेकिन अपने प्राण नहीं त्यागे।
यह देखकर सिपाही समझ गए कि यह कोई साधारण मानव नहीं है। इसके बाद पहरेदार राजा के पास गए और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। यह सुनकर राजा बहुत घबरा गया और तुरंत ऋषि माण्डव्य के पास गया और कहा कि हे महात्मा मैने आपको पहचानने में बहुत भूल की है। इसलिए मुझे क्षमादान दें। ऋषि माण्डव्य दयालु तो थे ही इसलिए उन्होंने राजा को क्षमा कर दिया। जिसके बाद महात्मा को सूली से नीचे उतारा गया। लेकिन बहुत प्रयास करने के बाद भी वह सूली से नहीं उतरे तब उस सूली को काट दिया गया। इसके बाद माण्डव्य ऋषि ने सूली के साथ ही कठोर तपस्या की और मृत्यु लोक को छोड़ दिया।
तब माण्डव्य ऋषि धर्मराज के पास गए और उनसे पूछा कि मैने ऐसा कौन सा अपराध किया था। जिसकी वजह से मुझे यह फल प्राप्त हुआ। तब धर्मराज बोले हे महात्मा आपने एक पंतगे की पूंछ में सीक गढ़ा दी थी। उसी का फल आपको मिला है। जैसे थोड़े से पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है। उसी प्रकार थोड़े से पाप का कई गुना दंड भी मिलता है। यह सुनकर माण्डव्य ऋषि ने पूछा मैने ऐसा कब किया था। तब धर्मराज ने बताया कि आपने यह कर्म अपने12 वर्ष की आयु में किया था। यह सुनकर माण्डव्य ऋषि बोले कि 12 वर्ष की आयु में मनुष्य जो भी करता है।
उसे अधर्म नहीं माना जाता। क्योंकि उस समय उसे धर्म और अर्धम का ज्ञान नहीं होता। धर्मराज तुमने एक छोटे से अपराध का मुझे इतना बढ़ा दंड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हुं। कि तुम शुद्र योनी में जन्म लेकर मृत्यु लोक में वास करोगे और आज से मैं संसार में कर्मफल की मर्यादा स्थापित करता हूं कि चौदह वर्ष तक किए गए कर्मों का पाप नहीं लगेगा। इसके बाद किए गए कर्मों का फल अवश्य मिलेगा। इसी अपराध और श्राप के कारण यमराज को शुद्र योनी में महाभारत काल में विदूर के रूप में जन्म लेना पड़ा था। विदुर नीतिवान,ज्ञानवान और बहुत बडे़ राजनीतिज्ञ थे।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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