Navratri Special Story: दिन में 3 बार बदलती हैं देवी मां अपना रूप, जानें देवास वाली माता की कहानी

Navratri Special Story: शारदीय नवरात्रि का पर्व देशभर में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत देश में निष्ठा और धार्मिक परंपराओं के अनुरूप माता रानी की पूजा-आराधना की जाती है। दुनियाभर में माता रानी के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनके मान्यताओं और चमत्कारों को लेकर सदियों से मान्यता चली आ रही है। इन्हीं चमत्कारी मंदिरों में से मध्य प्रदेश के देवास में मौजूद देवास वाली माता का मंदिर भी है। शक्तावतों राजपूतों की आराध्य मां चामुंडा और तुलजा भवानी की महिमा किसी से भी छिपी नहीं है।
माता की लीलाओं से जुड़ी कहानियां अनंत काल से चली आ रही हैं। ऐसा कहा जाता है कि माता रानी का आशीर्वाद जिसके सिर पर होता है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मध्य प्रदेश में स्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां की माता 24 घंटे में तीन बार अपना रूप परिवर्तित करती हैं। देवास माता मंदिर वाली जगह पर माता सती के शरीर का रक्त गिरा था, जिस वजह से इसे रक्त पीठ का दर्जा प्राप्त है। यहां पर गुरु गोरखनाथ, राजा भर्तृहरि, सद्गुरु शीलनाथ महाराज जैसे कई सिद्ध पुरुषों ने तपस्या की थी। आपको बता दें कि यहां पर माता रानी को पान की बीड़ा खिलाने की परंपरा है।
नाथ समुदाय की इष्ट देवी
माता चमुंडा और तुलजा भवानी नाथ सम्प्रदाय की इष्ट देवी मानी जाती हैं। नवरात्रि पर्व के खास मौके पर विशेषकर अष्टमी और नवमी के दिन यहां पर राज परिवार पूजा-अर्चना कर हवन में आहुति देते हैं। माता सती के अंग जहां-जहां गिरे, वे जगह शक्ति पीठ कहलाए और जहां रक्त गिरा, वह स्थान रक्त शक्ति पीठ या अर्ध शक्ति पीठ कहलाए।
देवास स्थल पर माता सती का रक्त गिरा, जिससे दो देवियों का जन्म हुआ। उत्पन्न हुई देवियों के बीच बहन का रिश्ता है। दोनों देवी देवास वाली माता के नाम से विख्यात हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर दोनों देवी मां जागृत अवस्था में मौजूद हैं। इन स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से पुकारा जाता है। बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुंडा देवी का स्वरूप माना जाता है।
माता के जागृत रूप
मंदिर को लेकर लोगों का मानना है कि देवी मां की ये प्रतिमाएं जागृत स्वरूप में यहां पर विद्यमान हैं। सच्चे मने से जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी होती है। इसके अलावा देवास मंदिर को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कि यह पहला ऐसा शहर है, जहां दो वंश होलकर राजवंश और पंवार राजवंश राज किया करते थे। बड़ी मां तुलजा भवानी होलकर वंश की कुलदेवी हैं और छोटी मां चामुंडा देवी पंवार वंश की कुलदेवी हैं।
प्रत्येक नवरात्रि सप्तमी और अष्टमी को यहां पर यज्ञ कराया जाता है, जिसमें दोनों राजवंश के लोग मौजूद होते हैं। टेकरी में दर्शन करने वाले भक्त बड़ी और छोटी मां के साथ बाबा भैरोनाथ के दर्शन करना अनिवार्य मानते हैं।
तीन बार रूप बदलने वाली माता
माता के विषय में ऐसा कहा जाता है कि सुबह के समय में माता अपने को बाल रूप, दोपहर के समय में युवावस्था और रात्रि के समय मां को वृद्धावस्था के रूप में देखा जा सकता है। नवरात्रि के खास मौके पर भारी संख्या पर लोग यहां दर्शन करने आते हैं। मान्यता के अनुसार, संतान न होने पर माता को 5 दिन तक पान का बीड़ा खिलाया जाता है, साथ ही उल्टा साथिया यानि स्वास्तिक बनाने की प्रथा है। इसके बाद मान्यता पूरी होने पर स्वास्तिक को सीधा किया जाता है।
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