Navratri Special Story: महानवमी पर किया जाता है धुनुची नृत्य, जानें पौराणिक कहानी

Navratri Special Story: भारत के कई हिस्सों में नवरात्रि का एक अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है। लेकिन कोलकाता में दुर्गा पूजा के समय एक अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। ऐसा नजारा शायद ही किसी और जगह की दुर्गा पूजा में देखने को मिले। बंगाली लोग एक अलग ही परंपरा से दुर्गा मां की पूजा अर्चना करते हैं। अगर आप दुर्गा पूजा के वक्त होने वाली परंपरा को करीब से देखकर जीना चाहते हैं, तो जीवन में नवरात्रि के समय बंगाल घूमने जरूर जाएं।
बंगाल में नवरात्रि के समय कई प्रकार की परंपरा जैसे गरबा, सिंदूर खेला आदि को निभाया जाता है। इसमें से एक परंपरा धुनुची नाच भी है। यह नृत्य नवरात्रि में दुर्गा पूजा पंडालों में महानवमी के दिन किया जाता है।इस नृत्य की शुरुआत सप्तमी से ही हो जाती है। महिलाएं हो या पुरुष, सभी इस नृत्य में मनमुग्ध दिखते हैं। अधिकतर लोग धुनुची को कभी हाथों में तो कभी दांतों से दबाकर नृत्य और करतब करते हुए दिखते हैं। इस नृत्य की सबसे खास बात यह है, कि इसे सीखने के लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है।
धुनुची नृत्य का महत्व
दुर्गा पूजा के दौरान होने वाले नृत्य का इतिहास सदियों पुराना है। इस नृत्य को लेकर ऐसा कहा जाता है धुनुची नृत्य असल में शक्ति प्रतीक है। इस नृत्य का खास रिश्ता महिषासुर वध से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि बलशाली महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा- आराधना की थी, जिसके बाद माता दुर्गा का जन्म हुआ। महिषासुर राक्षस का वध करने से पहले मां दुर्गा ने अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य किया था। तब से लेकर आज तक यह परंपरा यूं ही चलती आ रही है। पंडालों में सप्तमी से लेकर नवमी तक यह नृत्य किया जाता है।
क्या होता है धुनुची
धुनुची मिट्टी से बना एक विशेष आकार का बर्तन होता है, जिसमें सूखे नारियल का छिलका, जलता हुआ कोयला, कपूर और हवन सामग्रियों को रखकर जलाया जाता है। इसके बाद महिलाएं व पुरुष ढोल-नगाड़ों के साथ बंगाली गाने पर नृत्य करते हैं और मां दुर्गा की आराधना करते हैं। इस नृत्य के पीछे ऐसी मान्यता है, कि इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं।
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