Navratri Special Story: मां दुर्गा का वाहन क्यों बना सिंह, जानें पौराणिक कथा

Navratri Special Story: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत इस साल 15 अक्टूबर से होने वाला है। माता रानी के आगमन की तैयारियां चारों ओर शुरू हो गई है। नवरात्रि पर्व के नौ दिनों तक माता के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान के प्रत्येक रूप का अपना एक वाहन है। जैसे भगवान गणेश का वाहन मूषक राज, तो वहीं भगवान शिव का वाहन नंदी महाराज हैं। माता दुर्गा हमेशा सिंह की सवारी करती हुई नजर आती हैं। क्या आपने कभी सोचा कि माता शेर की ही सवारी क्यों करती हैं।
मां दुर्गा की सवारी शेर
माता दुर्गा को अनेक नामों जैसे शेरावाली, सिंहवाहिनी, जया आदि से पुकारा जाता है। पूजा-अर्चना के बाद शेरावाली माता की जय के जयकारे लगाए जाते हैं। सिंह वाहन के कारण माता रानी को इन नामों से पुकारा जाता है।
पौराणिक कथा की मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान को पति के रूप में पाने के लिए कई वर्ष तक तप किया। अधिक समय तक तप में लीन होने के कारण माता का रंग सांवला हो गया। इस कठोर तपस्या के बाद शिव और माता पार्वती का विवाह हो गया। प्रचलित कथा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने मजाक-मजाक में माता पार्वती को काली कह दिया, जिस बात से क्रोधित होकर माता कैलाश पर्वत छोड़कर चली जाती हैं।
कैलाश पर्वत छोड़ने के बाद माता पार्वती वन में तपस्या करने चली जाती हैं। तपस्या के दौरान एक भूखा शेर शिकार की तलाश में माता के पास पहुंच जाता है। माता के तप को देखते हुए शेर वहीं चुपचाप बैठकर देवी के उठने का इंतजार करने लग जाता है। कई वर्ष बीतने के बाद भी शेर वहीं बैठा रहता है। समय बीतता जाता है, लेकिन माता के तपस्या से उठने का कोई भी आसार नजर नहीं आते। माता की तपस्या को देखते हुए भगवान शिव प्रकट होकर देवी को गोरे होने का वरदान देकर चले जाते हैं। इस वरदान के थोड़े समय बाद माता पार्वती तप से उठकर गंगा स्नान करने जाती हैं। स्नान के तुरंत बाद माता के अंदर से एक और देवी प्रकट हुई, जिनका रंग बेहद काला था। काली देवी के निकलते ही माता पार्वती का रंग गोरा हो जाता है। माता के अंदर से निकली हुई माता का नाम 'कौशिकी' और देवी पार्वती का नाम 'गौरी' पड़ गया।
स्नान के बाद देवी ने अपने निकट शेर को देखा जो उनका शिकार करने का इंतजार कर था। माता के तप से उठने के इंतजार में शेर कई वर्षों तक बैठा रहा, जिससे प्रसन्न होकर माता रानी सिंह को अपना वाहन बना लेती हैं।
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