Putrada Ekadashi 2021 : पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने मात्र से मिलेगी संतान और कष्टों से मुक्ति

Putrada Ekadashi 2021 : पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सुनने मात्र से मिलेगी संतान और कष्टों से मुक्ति
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Putrada Ekadashi 2021 : पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) साल में दो बार आती है। पहली पुत्रदा एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी Pausha Putrada Ekadashi) के नाम से जानी जाती है। जोकि जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है। और दूसरी एकादशी श्रावण का एकादशी (Shravan's Ekadashi) के नाम से जानी जाती है। साल 2021 में पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी 2021 ( Putrada Ekadashi 24 January 2021) को है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से और विष्णु भगवान की पूजा करने से संतान की प्राप्ति के योग बनते हैं। तो आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi vrat katha) के बारे में।

Putrada Ekadashi 2021 : पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) साल में दो बार आती है। पहली पुत्रदा एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी Pausha Putrada Ekadashi) के नाम से जानी जाती है। जोकि जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है। और दूसरी एकादशी श्रावण का एकादशी (Shravan's Ekadashi) के नाम से जानी जाती है। साल 2021 में पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी 2021 ( Putrada Ekadashi 24 January 2021) को है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से और विष्णु भगवान की पूजा करने से संतान की प्राप्ति के योग बनते हैं। तो आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi vrat katha) के बारे में।

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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)

भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अर्जुन ने प्रणाम कर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की, कि हे मधुसूदन आप पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के महात्म्य को बताने की कृपा करें।

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले कि हे पार्थ इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस एकादशी के दिन भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं आपको एक कथा सुनाता हूं। जिसे तुम ध्यान पूर्वक सुनों।

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उन्हें कोई पुत्र नहीं था। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उनके बाद उन्हें और पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी-घोड़े राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी में भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार करते थे कि मेरे मरने के बाद मुझे कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितृों और देवताओं का ऋण में कैसे चुका सकूंगा। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा हो वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगे रहते थे। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करते हुए अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिए। तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगे।

उन्होंने देखा कि वन में मोर, सुअर, सिंह आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। वन के दृष्यों को देखकर राजा सोच विचार में लग गए। वह सोचने लगे कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिस्ट भोजन से तृप्त किया, फिर भी मुझको दुख ही प्राप्त हुआ। ऐसा क्यों। राजा प्यास के मारे अत्यंत दुखी हो गए। और पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे। तथा सारस, हंस आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा ने घोड़े से उतर कर मुनियों को दंडवत प्रणाम किया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा कि हे राजन हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तुम्हारी क्या इच्छा है।

तब राजा ने मुनियों से पूछा कि महाराज आप कौन हैं और किस लिए यहां आए हैं। तो उन्होंने बताया कि आज से पांचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज संतान प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है। और हम लोग विश्वदेव हैं। और हम इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगे कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले हे राजन आप पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें। भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया। और द्वादशी को व्रत का पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीत जाने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया। और नौ महीने के पश्चात उन्हें एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस महात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

कथा-सार

पुत्र का ना होना बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है पुत्र का कुपुत्र होना। अत: सर्वगुण संपन्न और सुपुत्र पाना बड़ा ही दुर्लभ है। ऐसा पुत्र उन्हें ही प्राप्त होता है जिन्हें साधुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हो। तथा जिनके मन में भगवान की भक्ति हो। इस कलियुग में सुयोग्य पुत्र प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन पुत्रदा एकादशी का व्रत ही है। ऐसी है पुत्रदा एकादशी की महानता।

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