Pitru Paksha 2021 : नवरात्रि के पहले दिन होगा मातामह श्राद्ध, जानें इसकी ये विशेष बात

Pitru Paksha 2021 : नवरात्रि के पहले दिन होगा मातामह श्राद्ध, जानें इसकी ये विशेष बात
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  • सुख-शांति का प्रतीक है मातामह श्राद्ध
  • संतान ना होने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है
  • परिजनों की स्मृति में तर्पण और श्राद्ध कर्म की तिथि के अनुसार करने की परंपरा है

Pitru Paksha 2021: मातामह श्राद्ध आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि , गुरुवार 07 अक्टूबर 2021, यानी प्रथम नवरात्रि के दिन होगा। मातामह श्राद्ध अपने आप में एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता को व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें हैं, अगर वे पूरी न हों तो यह श्राद्ध नहीं निकाला जाता। शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र जिंदा हो। अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता। इस प्रकार यह माना जाता है कि मातामह का श्राद्ध सुख व शांति और संपन्नता की निशानी है। यहां यह बात गौर करने लायक है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी बेटी के घर का पानी भी नहीं पीता है और शास्त्रों में इसे वर्जित भी माना गया है, लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दोहित्र कर सकता है और इसे शास्त्रोक्त माना गया है। परिजनों की स्मृति में तर्पण और श्राद्ध कर्म की तिथि के अनुसार करने की परंपरा है। लेकिन कई बार तिथियां ना पता होने, दिवंगत के परिवार में संतान ना होने सहित कई समस्याएं होती है। संतान ना होने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है।

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ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि नवमी या अमावस्या के दिन सर्व पितृ श्राद्ध पर तिथि पता नहीं होने पर भी श्राद्ध कर्म हो सकता है। जिनके नाम और गोत्र का पता नहीं हो उनका देवताओं के नाम पर भी तर्पण कर सकते है। परंपरा है कि लोग अपनी संतान नहीं होने पर दत्तक गोद लेते थे ताकि मृत्यु के बाद वो पिंडदान कर सके। मान्यतानुसार दत्तक पुत्र दो पीढ़ी तक श्राद्ध कर सकता है।

आश्विन (आसोज) कृष्ण पक्ष को श्राद्ध पक्ष कहते है । इसमें दिवंगत आत्माओं को उनके स्वर्गवास की तिथी को उनका श्राद्ध निमित्त तर्पण आदि करते है । यहां अपराह्न के समय मृत्यु तिथि हो, उस दिन संबंधित दिवंगत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी को करते हैं व यान दुघर्टना, विष शस्त्रादि से अपमृत्यु प्राप्त वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को करते हैं । अमावस्या को सर्व पितृ और मातामह (नाना) मातामही (नानी) का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिप्रदा (नवरात्रि ) के दिन करते हैं।

मातामह श्राद्ध में दूसरी पीढ़ी करती है तर्पण-पिंडदान

कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि दिवगंत परिजन के घर में लड़का ना हो, तो लड़की की संतान यानी नाती भी पिंडदान कर सकता है। मान्यतानुसार लड़की के घर का खाना नहीं खा सकते, इसलिए मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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