Pitru Paksha 2021: श्राद्ध के समय भूलकर भी ना करें ये काम, जानें...

Pitru Paksha 2021: भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक के 16 दिन पितृपक्ष के नाम से जाने जाते हैं। इन 16 दिनों को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। पितृ पक्ष में लोग अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखकर धार्मिक कर्म करते हैं और पितृों के निमित पितृ पक्ष में धार्मिक कर्म उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्धकर्म करके संपन्न किए जाते हैं। जो लोग अपने पितृों के निमित श्रद्धा न रखकर श्राद्धकर्म नहीं करते हैं, उनके पितृगण उनसे नाराज होकर उन्हें श्रापित भी करते हैं, इस श्राप को ही ज्योतिष में पितृदोष कहा जाता है। पितृपक्ष में श्राद्धकर्ता को पान खाना, तेल लगाना, क्षौरकर्म, मैथुन व पराया अन्न खाना, यात्रा करना, क्रोध करना वर्जित माना जाता है। तो आइए जानते हैं पितृ पक्ष के दौरान वे कौन से काम हैं जो नहीं करने चाहिए और इस दौरान कौन से काम करने चाहिए यानी क्या हैं श्राद्ध कर्म के नियम...
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श्राद्ध कर्म के नियम
- श्राद्धकर्म में हाथ में जल, अक्षत, चन्दन, फूल व तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लेना आवश्यक है।
- श्राद्धकर्म में चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, बासी, अपवित्र फल या अन्न निषेध माने गए हैं।
- श्राद्धकर्म में पितृ की पसंद का भोजन जैसे दूध, दही, घी व शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर बनाने चाहिए।
- श्राद्धकर्म में तर्पण आवश्यक है इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितृों को तृप्त किया जाता है।
- श्राद्धकर्म में ब्राह्मण भोज के समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए।
- श्राद्धकर्म में गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश, तिल और तुलसी पत्र का होना महत्वपूर्ण है।
- श्राद्धकर्म में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है।
- श्राद्धकर्म में गाय का दूध, घी व दही ही प्रयोग में लेना चाहिए। भैंस बकरी इत्यादि का दूध वर्जित माना गया है।
- श्राद्धकर्म में लोहे का उपयोग किसी भी रूप में अशुभ माना जाता है।
- ब्राह्मण को मौन रहकर व व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर भोजन करना चाहिए।
- श्राद्धकर्म तिल का होना आवश्यक है, तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।
- श्राद्धकर्म में कुशा का होना आवश्यक है, कुशा श्राद्ध को राक्षसों से बचाती है।
- श्राद्धकर्म में जल में काले तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करना चाहिए।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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