ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुरुषोत्तम मास में क्या करें और क्या ना करें, आप भी जानें

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुरुषोत्तम मास में क्या करें और क्या ना करें, आप भी जानें
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जिस मास में सूर्य संक्रांति की नहीं होती है वह मास पुरूषोत्तम मास कहलाता है। पुरूषोत्तम मास को मल मास या अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है। यह मास प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार आता है। इन दिनों में कोई भी नया कार्य करना अथवा मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है।

जिस मास में सूर्य संक्रांति की नहीं होती है वह मास पुरूषोत्तम मास कहलाता है। पुरूषोत्तम मास को मल मास या अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है। यह मास प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार आता है। इन दिनों में कोई भी नया कार्य करना अथवा मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है। किन्तु सनातन धर्म में अधिक मास में धर्म-कर्म से जुड़े सभी कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होता है। श्रीमदभागवद पुराण में इस मास को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। मान्यता है कि इन दिनों में भागवत कथा करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। पुरूषोत्तम मास में केवल भगवान के लिए व्रत, दान,पुण्य, हवन, यज्ञ या ध्यान आदि करने विधान है। इस मास में ऐसा करने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। तथा अक्षय पुण्य भी प्राप्त होता है। मल मास में दीप दान, वस्त्र दान, ग्रंथ दान और श्रीमदभागवत कथा का विशेष महत्व है। इस मास में दीप दान करने से धन वैभव के साथ ही आपको पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है। तो आइए आप भी जानें ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुरुषोत्तम मास में क्या करें और क्या ना करें। जिससे श्रीहरि विष्णु भगवान की कृपा आपको प्राप्त हो, तथा आपकी समस्त परेशानियां और संकट नष्ट हो जाएं।

पुरुषोत्तम मास में क्या करें

1. मंत्र जाप करें

पुरुषोत्तम मास में आप ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। इसके अलावा आप अपने गुरु द्वारा प्रदान किए गए मंत्र का भी जाप इस माह में कर सकते हैं। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूतक, श्रीसूतक, हरिवंश पुराण तथा एकादशी माहत्म्य कथाओं के श्रवण से मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं। मल मास के समय श्रीमदभागवत गीता, श्रीकृष्ण की लीलाएं, और श्रीराम कथा का वाचन तथा विष्णु भगवान की भक्ति करने का अलग ही महत्व है।

2. कथा का पाठ करें या सुनें

अधिक मास में कथा का पढ़ना या सुनना दोनों को ही अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस मास में भूमि पर शयन करना बहुत श्रेष्ठ माना गया है। मल मास के समय में एक ही समय भोजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह ध्यान रखें कि जब आप कथा पढ़ें तब अधिक से अधिक लोग आपकी कथा का श्रवण करें।

3.दीप दान करें

पुरुषोत्तम मास में दीप दान, वस्त्र तथा श्रीमद् भागवत कथा ग्रंथ का दान विशेष महत्व होता है। इस मास में दीप दान करने से धन-वैभव के साथ ही आपको पुण्य प्राप्त होता है।

4.दान-पुण्य करें

प्राचीन पुराणों के अनुसार अधिक मास के दिनों में व्रत-उपवास, दान-पुण्य, यज्ञ-हवन तथा ध्यान करने से मनुष्य के कई जन्मों के पाप कर्मों का नाश हो जाता है। साथ ही उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह में आपके द्वारा किसी गरीब को दान देने पर उस दान का सौ गुना फल प्राप्त होता है।

प्रतिपदा को चांदी के पात्र में घी रखकर किसी मंदिर में पुजारी को दान करें। इससे परिवार में शांति बनी रहती है।

द्वितीया को कांसे के बर्तन में सोना दान करने से खुशहाली आती है।

तृतीया को चने या चने की दाल दान करने से व्यापार में मदद मिलती है।

चतुर्थी को खारक का दान लाभदायक होता है।

पंचमी को गुड‍़ तथा तुवर की दाल दान करने से रिश्तों में मिठास आती है।

5. आचरण पर ध्यान दें

पुरूषोत्तम मास में भगवान विष्णु पूजन के साथ-साथ कथा श्रवण का विशेष महत्व है। मल मास में शुभ फल प्राप्त करने के लिए साधक को पुरुषोत्तम मास में अपना आचरण पवित्र तथा सौम्य रखना चाहिए। इस मास में साधक को अपने व्यवहार में भी नरमी रखने पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

पुरुषोत्तम मास में क्या न करें

1. पुरुषोत्तम मास की अवधि में सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। जिन दैविक कार्यों को सांसारिक फल की प्राप्ति के लिए प्रारंभ किया जाए, वे सभी कार्य मल मास में वर्जित होते हैं।

2. मल मास में तिलक, विवाह, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण खरीदना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा ग्रहण करना, नववधु का प्रवेश, देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा आदि कार्यों का त्याग करना चाहिए।

अधिक मास में विशेषकर रोग निवृति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज-जलवा आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं।

मल-मास में यात्रा करना, साझेदारी का कार्य करना, मुकदमा दर्ज कराना, वृक्ष लगाना, दान देना,बीज बोना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।

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