Radha Ashtami 2021 : राधाष्टमी के दिन जरुर पढ़ें ये व्रत कथा, जानें पूजा विधि और महत्व

Radha Ashtami 2021 : राधाष्टमी के दिन जरुर पढ़ें ये व्रत कथा, जानें पूजा विधि और महत्व
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Radha Ashtami 2021 : राधाष्टमी (Radha Ashtami) का पर्व भाद्रपद मास (Bhadrapada month) के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि (Ashtami Tithi) को मनाया जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को राधा जी (Radha Ji) का प्राकट्य दिवस भी माना गया है। राधा जी वृषभानु जी (Vrishabhanu ji) के घर में यज्ञ वेदी से प्रकट हुई थीं। वेद और पुराण आदि में जिनका कृष्णवल्लभा (krishnavallabha) कहकर गुणगान किया गया है। वहीं कुछ जानकार श्रीराधा जी का प्राकट्य वृषभानुपुरी (Vrishabhanupuri) यानी बरसाना (Barsana) या उनके ननिहाल रावल (Raval) गांव में मानते हैं। इस दिन भक्त लोग बरसाना यानी उत्तर प्रदेश के मथुरा (Mathura) जिले की इन ऊंची पहाड़ियों पर स्थित वन की परिक्रमा करते हैं। वहीं मध्य प्रदेश में भी राधाष्टमी के दिन जगह-जगह पर सांस्कृतिक और लोक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंदिरों को सजाया जाता है। तथा मंदिरों में श्रीराधा जी की पूजा-अर्चना की जाती है। तो आइए जानते हैं राधाष्टमी की कथा के बारे में...

Radha Ashtami 2021 : राधाष्टमी (Radha Ashtami) का पर्व भाद्रपद मास (Bhadrapada month) के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि (Ashtami Tithi) को मनाया जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को राधा जी (Radha Ji) का प्राकट्य दिवस भी माना गया है। राधा जी वृषभानु जी (Vrishabhanu ji) के घर में यज्ञ वेदी से प्रकट हुई थीं। वेद और पुराण आदि में जिनका कृष्णवल्लभा (krishnavallabha) कहकर गुणगान किया गया है। वहीं कुछ जानकार श्रीराधा जी का प्राकट्य वृषभानुपुरी (Vrishabhanupuri) यानी बरसाना (Barsana) या उनके ननिहाल रावल (Raval) गांव में मानते हैं। इस दिन भक्त लोग बरसाना यानी उत्तर प्रदेश के मथुरा (Mathura) जिले की इन ऊंची पहाड़ियों पर स्थित वन की परिक्रमा करते हैं। वहीं मध्य प्रदेश में भी राधाष्टमी के दिन जगह-जगह पर सांस्कृतिक और लोक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंदिरों को सजाया जाता है। तथा मंदिरों में श्रीराधा जी की पूजा-अर्चना की जाती है। तो आइए जानते हैं राधाष्टमी की कथा के बारे में...

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पद्म पुराण के अनुसार, राधा जी राजा वृषभानु की पुत्री थीं और उनकी माता का नाम कीर्ति था। कथा के अनुसार, जब एक बार राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे तब उनको भूमि पर कन्या के रुप में राधा जी मिली थीं। इसके बाद राजा वृषभानु कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। राधा जी जब बड़ी हुईं तो उनका जीवन सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण जी के सानिध्य में बीता। किन्तु राधा जी का विवाह रापाण नामक व्यक्ति के साथ संपन्न हुआ।

राधाष्टमी महत्व

वेदों और पुराणों में राधा जी को कृष्ण वल्लभा करकर बोला जाता है। मान्यता है कि राधाष्टमी की कथा श्रवण से व्यक्ति की वृत्ति सुधर जाती है और वह सुखी और सर्वगुण संपन्न हो जाता है। श्रीराधा जी के जाप और स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि, श्रीकृष्ण के साथ यदि राधा जी की पूजा नहीं की जाती है तो भगवान श्रीकृष्ण उस पूजा को स्वीकार नहीं करते हैं। श्रीराधा रानी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। अत: श्रीकृष्ण जी के साथ में श्रीराधारानी का भी पूजन विधि पूर्वक करना चाहिए।

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राधाष्टमी पूजन विधि

  • राधाष्टमी के दिन प्रात:काल उठकर घर की साफ-सफाई करनी चाहिए।
  • नित्य कार्यों से निवृत्त होकर स्नान के बाद शुद्ध अंत:करण से व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद श्रीराधारानी को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के पश्चात उनका श्रृंगार करें।
  • श्रीराधारानी की प्रतीक मृर्ति को स्थापित करें।
  • श्रीराधारानी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा धूप-दीप और फल-फूल आदि से करनी चाहिए।
  • इसके बाद उन्हें पंचामृत चढ़ाएं और आरती आदि करने के बाद अंत में श्रीराधा-कृष्ण को प्रसाद आदि का भोग लगाएं।
  • इस दिन निराहार व्रत करना चाहिए। तथा संध्या आरती करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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