राहु के वृषभ राशि मे आने से भारत .के चीन के साथ बिगड़ सकते हैं हालात, आप भी जानें

Rahu ka gochar: अधिक संवेदनशील वृषभ राशि में राहु का गोचर होने से भारत के लिए कुछ महीने संवेदनशील रहेंगे। भारत पर युद्ध और किसी बड़े नेता के साथ अनहोनी घटना यूनिफार्म सिविल कोड जैसा कानून लागू करना हो भी सकता है। पिछले सालो में जब राहु वृष राशि में आये तब -तब भारत में अनहोनी घटना हुई हैं। तो आइए आप भी जानें पं अभिमन्यु पाराशर के अनुसार वृषभ राशि में राहु का गोचर होने के कारण भारत और चीन की स्थिति और प्रधानमंत्री पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जरुरी बातें।
23 सितंबर को दो पाप ग्रह राहु और केतु का राशि परिवर्तन हुआ है। ये दोनों ग्रह हमेशा आमने-सामने रहते हैं। इन दोनों ग्रहों का राशि परिवर्तन राशियों को जहां प्रभावित करेगा वहीं भारत और देश के प्रधानमंत्री जी की कुंडली पर भी असर डालेगा। पिछले समयों में जब-जब राहु वृष राशि में आया है तब-तब भारत के लिए संवेदनशील हुआ है।
राहु वृष राशि में 01 मई, 1946 से 18 नवंबर 1947
भारत की आजादी और बटवारे के समय हुए सांप्रदायिक दंगे
राहु वृष राशि में 05 दिसंबर, 1964 से 24 जून 1966
भारत-पाक युद्ध 1965, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री
श्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु 11 जनवरी 1966
राहु वृष राशि में 13 जुलाई, 1983 से 29 जनवरी 1985
ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून 1984 – 8 जून 1984, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती
इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984
राहु वृष राशि में 16 फरवरी, 2002 से 05 सितंबर 2003
गुजरात गोधरा कांड 27 फरवरी 2002
राहु वृष राशि में 23 सितंबर, 2020 से अप्रैल 12, 2022 तक
मेदिनी-ज्योतिष के ग्रंथ के अनुसार वृषभ राशि में राहु का गोचर मनुष्यों को दुःख देने वाला तथा दुर्भिक्ष कारक कहा गया है। भारत के संदर्भ में अन्य देशों की तुलना में वृषभ राशि में राहु का गोचर अधिक संवेदनशील पाया गया है। भारत की आजादी और बंटवारे के समय हुए सांप्रदायिक दंगों के समय राहु वृषभ राशि में गोचर कर रहा था। वर्ष 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में रहस्यमय मृत्यु के समय भी राहु वृषभ राशि में गोचर कर रहा था।
ठीक 18 वर्ष बाद जब राहु पुनः वृषभ राशि में पहुंचे तो ऑपरेशन ब्लू स्टार, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या और सांप्रदायिक दंगों ने भारत की आत्मा को झकझोर दिया। दिसंबर 2001 में संसद पर आतंकी हमले तथा कुछ महीनों बाद हुए गुजरात दंगों के समय भी राहु वृषभ राशि में गोचर कर रहा था। अब 23 सितंबर 2020 को राहु पुनः वृषभ राशि में आ गए हैं। यहां राहु 18 महीनों तक रहेंगे। ऐसे में कोरोना महामारी, आर्थिक मंदी और सीमा पर चीन की आक्रामकता से जूझ रहे भारत के लिए अगले कुछ महीने बेहद संवेदनशील होने वाले हैं।
स्वतंत्र भारत की कुंडली और प्रधानमंत्री मोदी जी की कुंडली पर राहु-केतु का प्रभाव
17 सितंबर 1950 को पैदा हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कुंडली वृश्चिक लग्न की है। और आजाद भारत की कुंडली वृष लग्न की है। वृश्चिक और वृष राशि दोनों एक दूसरे से समसप्तक यानि 1/7 (आमने-सामने) के अक्ष पर हैं। इसलिए राहु के वृषभ राशि में और केतु के वृश्चिक राशि में गोचर के समय आजाद भारत की कुंडली तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कुंडली दोनों का लग्न और सप्तम भाव इन पाप ग्रहों के फंदों में जकड़ जाएगा। आज़ाद भारत की कुंडली में अभी चंद्रमा में शनि की अशुभ दशा चल रही है जो कि अगले वर्ष जुलाई के महीने तक चलेगी। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चंद्रमा में सूर्य की विंशोत्तरी दशा में चल रहे हैं जोकि उनकी कुंडली में पाप ग्रहों से प्रभावित हैं। प्रधानमंत्री जी की कुंडली में चंद्रमा नीच का होकर संघर्ष स्थान यानी छठे भाव के स्वामी पाप ग्रह मंगल से युक्त है जबकि सूर्य की केतु से युति उनके स्वस्थ्य और सुरक्षा को लेकर अगले 18 महीने कुछ संवेदनशील स्थिति का निर्माण कर रहे हैं।
चीन के साथ भारत की स्थिति
राहु के वृषभ राशि में गोचर से कुछ दिन बाद सूर्य 17 अक्टूबर को अपनी नीच राशि तुला में पहुंच कर शनि की दसवीं दृष्टि तथा मंगल की आठवीं दृष्टि से पीड़ित होंगे। जिसके फलस्वरूप चीन से हालात और बिगड़ सकते हैं। शेयर बाजार में भारी गिरावट तथा सोने में तेजी का योग बनेगा। राहु का वृष में आना तथा सूर्य का भी पीड़ित होना 17 अक्टूबर से 16 नवंबर के बीच भारत पर युद्ध और किसी बड़े नेता के साथ अनहोनी घटना का योग बना रहा है जिससे देश में विचित्र स्थिति का निर्माण हो सकता है। अगले वर्ष फरवरी माह में 6 ग्रहों की मकर में युति, मंगल का मेष में गोचर तथा राहु का वृष में होना सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करने का योग बना सकता है। जिसका कारण यूनिफार्म सिविल कोड जैसा कानून सरकार के द्वारा आनन-फानन में लागू करना हो भी सकता है। ऐसे में सत्तारुढ़ दल को संभलकर चलने की जरूरत होगी, जनता का विश्वास खासकर युवाओं में अपना प्रभाव बनाए रखना बेहद जरूरी होगा।
यह भविष्यवाणी संभावित है, एवं ज्योतिषीय आकलन और गणना पर आधारित है।
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