माथे पर तिलक लगाने और हाथ जोड़कर प्रणाम करने का ये है खास रहस्य, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक आधार

- रीति-रिवाज और परंपराएं (customs and traditions) हर किसी मनुष्य की व्यक्तिगत आस्था (personal beliefs) होती है।
- कुछ रीति-रिवाज और परंपराएं ऐसी हैं जिनके धार्मिक आधार (religious basis) के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार (scientific basis) भी मौजूद हैं।
हिन्दू सनातन धर्म (Hindu Sanatan Dharma) की मान्यताओं के अनुसार रीति-रिवाज और परंपराएं (customs and traditions) हर किसी मनुष्य की व्यक्तिगत आस्था (personal beliefs) होती है, लेकिन हिन्दू धर्म में अनेक रीति-रिवाज और परंपराएं ऐसी हैं। जिनके धार्मिक आधार (religious basis) के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार (scientific basis) भी मौजूद हैं। तो आइए जानते हैं ऐसे ही रीति-रिवाज और परंपराओं के बारे में।
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हाथ जोड़कर अभिवादन करना हिन्दू धर्म की प्राचीन सभ्यता में से पहली और प्रमुख परंपरा है। जिसमें व्यक्ति अपने दोनों हाथों को जोड़कर अभिवादन अथवा प्रणाम करके अपने सामने वाले व्यक्ति को सम्मान देते हैं जिससे इस क्रिया के वैज्ञानिक महत्व के कारण व्यक्ति को शारीरिक लाभ भी मिल जाता है। क्योंकि जब हम अपने दोनों हाथों को जोड़ते हैं तो हमारी हथेलियों और उंगलियों के उन स्थानों अथवा बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है जो हमारी आंख, नाक, कान, दिल आदि शरीर के अंगों से सीधा संबंध रखते हैं। और इस तरह से दबाव पड़ने की क्रिया को एक्वा प्रेशर चिकित्सा भी कहते हैं।
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वहीं दूसरी तरफ अपनी दोनों भौह के मध्य अपने ललाट यानि माथे पर तिलक लगाने से उस बिन्दू पर दवाब पड़ता है जोकि हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे अहम भाग माना जाता है। तिलक लगाने से व्यक्ति के इस खास हिस्से पर दबाव पड़ते ही व्यक्ति का ये खास तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो जाता है और आपके शरीर में नई ऊर्जा का संचार तिलक लगाने के तुरन्त बाद ही होने लगता है। तिलक लगाने से मानव मस्तिक में एकाग्रता की बढ़ोतरी होती है और चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का संचार भी सही मात्रा में होने लगता है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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