रूद्राक्ष और तुलसी की माला धारण करने के वैज्ञानिक रहस्य, आप भी जानें

सनातन हिन्दू धर्म में लोग वैष्णव परंपरा के अनुसार तुलसी की माला धारण करते हैं और सन्यासी परंपरा में संत-महात्मा और साधु लोग रूद्राक्ष की माला पहनते हैं। ये दोनों मालाएं भारत वर्ष में बहुत प्रचलन में हैं। इन मालाओं के धारण करने के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण शास्त्रों में बताए गए हैं। तो आइए आप भी जानें रूद्राक्ष और तुलसी की माला धारण करने के पीछे के रहस्यों के बारे में जरूरी बातें।
1. ऐसा माना जाता है कि रूद्राक्ष की माला गले के कैंसर को काफी हद तक ठीक करती है, इसलिए संत परंपरा के लोग यानि साधु-महात्मा आदि रूद्राक्ष की माला अपने गले में धारण करते हैं।
2. रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले लोगों में थायराइड और फेफड़े संबंधी विकार अपना प्रभाव कम डालते हैं। क्योंकि जब रूद्राक्ष की माला धारण की जाती है तो वह आपके माला हृदय तक आती है, इसलिए शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि रूद्राक्ष की माला धारण करने वाले लोगों को हृदय और थायराइड संबंधी विकार कम अथवा नहीं होते हैं।
3. जब हम लोग तुलसी की माला धारण करते हैं तो तुलसी की माला कंठ में ही पहनी जाती है। यानि कि तुलसी की माला कंठ से ही लिपटी हुई रहती है। इसके पीछे का वैज्ञानिक करण यह है कि तुलसी की माला धारण करने वाले लोगों को ENT यानि नाक, कान, गले से संबंधित विकार कम हो जाते हैं। तुलसी की माला धारण करने वाले लोगों में एलर्जी जैसी समस्याएं कम हो जाती हैं।
ऐसा माना जाता है कि रूद्राक्ष और तुलसी की माला धारण करने वालों को शास्त्रानुकूल नियमों का पालन करते हुए ही रूद्राक्ष और तुलसी की मालाएं धारण करनी चाहिए। मांसाहार आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शास्त्रोक्त विधि से नियम पूर्वक धारण करने पर ही ये मालाएं अपना प्रभाव दिखाती हैं, अगर आप शास्त्रों के अनुसार नियमों का पालन नहीं करते हैं, और मालाएं भी धारण करते हैं तो ये मालाएं अपने प्रभाव नहीं दिखाती हैं।
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