Sandhi Puja 2020 Date And Time : संधि पूजा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Sandhi Puja 2020 Date And Time : संधि पूजा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा
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Sandhi Puja 2020 Date And Time : शारदीय नवरात्रि में अष्टमी तिथि और नवमी तिथि के मध्य संधि पूजा की जाती है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है। संधि पूजा के दिन कुछ लोग कददू और ककड़ी की बलि भी देते हैं तो चलिए जानते हैं संधि पूजा 2020 में कब है (Sandhi Puja 2020 Mai Kab Hai), संधि पूजा का शुभ मुहूर्त (Sandhi Puja Shubh Muhurat), संधि पूजा का महत्व (Sandhi Puja Importance), संधि पूजा की विधि (Sandhi Puja Vidhi) और संधि पूजा की कथा (Sandhi Puja Story)

Sandhi Puja 2020 Date And Time : संधि पूजा (Sandhi Puja) के दिन मां दुर्गा की पूजा (Goddess Durga Puja) में 108 दीपक और 108 कमल के फूल अर्पित करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। इन चीजों के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। इस दिन लोग पारंपरिक वेष भूषा धारण करते हैं और ढोल नगाड़ों के साथ मां दुर्गा की पूजा करते हैं। इसके अलावा और क्या कुछ किया जाता है संधि पूजा के दिन आइए जानते हैं।


संधि पूजा 2020 तिथि (Sandhi Puja 2020 Tithi)

24 अक्टूबर 2020

संधि पूजा 2020 शुभ मुहूर्त (Sandhi Puja 2020 Shubh Muhurat)

सन्धि पूजा मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 34 मिनट से सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक (24 अक्टूबर 2020)

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 6 बजकर 57 मिनट से (23 अक्टूबर 2020)

अष्टमी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक (24 अक्टूबर 2020)


संधि पूजा का महत्व (Sandhi Puja Ka Mahatva)

शारदीय नवरात्रि में संधि पूजा अष्टमी और नवमी तिथि पर शाम के समय पर की जाती है। संधि पूजा को अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट तक किया जाता है। माना जाता है कि जिस समय मां चामुण्डा और महिषासुर के बीच में भयंकर युद्ध हो रहा था। उस समय चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने माता चामुण्डा की पीठ पर वार कर दिया था।जिसके बाद माता का मुख क्रोध के कारण नीला पड़ गया और माता ने दोनों राक्षस चण्ड और मुंड का वध कर दिया।जिस समय माता ने इन दोनों राक्षसों का वध किया था वह समय संधि काल का ही था।

प्रत्येक साल संध्या पूजा शारदीय नवरात्रि पर इसी मुहूर्त में की जाती है। इस मुहूर्त को माता का उग्र रूप लेने के कारण बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है। संधि पूजा में 108 दीपक और 108 कमल से मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इसके साथ ही मां दुर्गा को 108 बेलपत्र भी चढ़ाए जाते हैं। इनके अलावा मां दुर्गा को अन्य फल, पुष्प चावल,मेवा और गहने भी अर्पित किए जाते हैं।संधि पूजा का शुभारंग घंटी बजाकर किया जाता है और मंत्रो का उच्चारण करके माता की आरती की जाती है और मां दुर्गा की पूरे विधिविधान से पूजा की जाती है।


संधि पूजा की विधि (Sandhi Puja Ki Vidhi)

1. शारदीय नवरात्रि में संधि पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। यह पूजा अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट तक की जाती है।

2.संधि पूजा में मां दुर्गा को 108 दीपक और 108 कमल के फूल चढ़ाए जाते हैं।

3. इसके बाद मां दुर्गा को लाल वस्त्र, लाल फल , पुष्प,चावल और मेवा के साथ गहने भी अर्पित किए जाते है और ढोल नागाड़ों के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है।

4. संधि पूजा में कद्दू और ककड़ी की बलि देने का भी रिवाज है। इनकी बलि के बाद मां दुर्गा के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

5. अंत में मां दुर्गा की विधिवत पूजा करके उनकी आरती उतारी जाती है।


संधि पूजा की कथा (Sandhi Puja Ki Katha)

संधि पूजा का विशेष महत्व होता है। इस मुहूर्त को अति बलशाली मुहूर्त माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मां दुर्गा का महिषासुर के साथ युद्ध हो रहा था। उस समय चंड और मुंड ने मां दुर्गा पर पीछे से वार किया। जिसके बाद मां का क्रोध अत्याधिक बढ़ गया और उनका रंग क्रोध के कारण नीला पड़ गया। इसके बाद मां दुर्गा ने तीसरी आंख खोली और मां दुर्गा का स्वरूप चामुंजा देवी में बदल गया । इसके बाद मां ने चंड और मुंड का वध कर दिया। मां दुर्गा के चामुंडा रूप लेने के सम्मान में ही संधि पूजा की जाती है।

संधि पूजा को बंगाल में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग पारंपरिक वेश भूषा धारण करते हैं। इस दिन मां दुर्गा को 108 दीपक, 108 कमल, 108 बेल के पत्ते, गहने, पारंपरिक कपड़े, हिबिस्कस फूल, चावल , अनाज, एक लाल फल और माला अर्पित की जाती है। संधि पूजा में मंत्रोच्चारण को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन मां की पूजा ढोल, नगाड़ों के साथ की जाती है।

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